" ओ बाबू , सुन ना ! मुझे नेता बनना है , " --पैर पटक - पटक कर भोलूआ आज जिद पर आन पड़ा । कम अक्ल होने के बावजूद भोलूआ अपने भोलेपन के कारण गाँव भर का दुलारा था ।
बापू तो सुनते ही चक्कर खा गया । बिस्कुट ,चाकलेट और मेले घुमाने तक के सारे जिद तो आसानी से पूरा करता आया था , लेकिन बुरबक , अबकी कहाँ से नेता बनने का जिद पाल लिया । सोचे कि चलो गुड्डे- गुडि़या वाला नेता बना देंगे । रामलीला वाले सुगना से नेता जी का ड्रेस माँग के भी पहिराय देंगे , लेकिन भोलूआ का जिद तो असली नेता बनने से है । अब का किया जाये !
थोड़ी देर बाद ही चौपाल पर सबको इकट्ठा किया गया । सबकी नजर मुर्झाये से भोलूआ के चेहरे पर पड़ी तो मन भर आया । गाँव भर को ही जैसे भोलूआ का नेता बनने की चिंता ने आ घेरा । अब भोलूआ को नेता तो बनाना ही पडेगा क्योंकि श्यामलाल जी , जो दुनिया भर की जानकारी रखते है उनकी बातों का कोई काट नहीं है , वे बोल दिये है कि नेता बनने का दौरा नेता बनने से ही जायेगा ।
भोलूआ ,आखिर पूरे गाँव का अपना दुलारा बच्चा है ,जैसे नंदगांव में कृष्ण हुआ करते थे ।
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आखिर बच्चे की चाहत का सवाल है । अब यह नेता बने तो बने कैसे ? मिलकर तय हुआ कि धनुआ नाई के पास चला जाये । धनुआ नाई का नेता लोगों के दाढ़ी बनाने के लिये वहाँ रोज का आना -जाना है । इतिहास गवाह है कि नाई राज -रजवाड़ों के भी राजदार हुआ करते थे तो जरूर नेताओं के भी जरूर वह राजदार होगा । वही बतलायेगा कोई नया रास्ता ।
धनुआ अपने घर इतना भीड़ देख सकपका गया । एकदम से चिल्ला उठा , " ये नेता बनकर कहाँ घुस आये हो आप लोग ! "
" देखो वो नेता बोला , मुझे नेता बोला ,मै नेता जरूर बनूँगा ।" भोलूआ के उम्मीदों को मानों पंख लग गये ।
" अरे ,जहाँ भीड़ वहीं नेता ! आपके पास भीड़ तो आपका नेता बनना पक्का ! " -बापू भोलूआ के सिर पर हाथ फेर उम्मीद से सहला दिये ।
गाँववालों को मानों धनुआ नाई नहीं बल्कि पारस पत्थर मिल गया था , सब घेर कर उसको ध्यान से सुनने लगे ।
" लेकिन एक चीज़ की कमी आड़े आ सकती है आपके नेता बनने में ! " धनुआ गंभीर हो उठा।
" कौन से चीज़ की कमी...? " मुश्किल से सब्र रखे हुए सब एक साथ ही बोल उठे ।
" ध्यान से सुनो , यह बहुत राज की बात है । सभी नेताओं के पास यह होता है । जिस नेता के पास इसकी कमी होती है वो दुमकटा कहलाता है --" धनुआ फुसफुसा कर कहा ।
" हैss , दुमकटा ! नहीं , नहीं , मुझे दुमकटा नेता नहीं , अच्छा नेता बनना है ।" भोलूआ का धैर्य टूट रहा था ।
"अरे , पहली मत बुझाओ , का होना जरूरी होता है । हम सब ले आयेंगे । ईहाँ , लडका का प्राण निकल जायेगा , देर ना करो ,बताओ !" भोलूआ के बापू अधीर हो उठे ।
" अरे ,हम भी अधिक तो नहीं जानते है, लेकिन वे कोई " संकल्प " की बात करते है , कि नेता के पास जनता को दिखाने को कुछ हो ना हो, " भीड़ " और "संकल्प" , ई दुई चीज़ दिखाना बेहद जरूरी होती है । भीड़ तो आपके पास है ही बस संकल्प का जुगाड़ कर लीजिये। "
" ओ भगवानलाल ,इधर आ ,सुन , तुम कल तड़के ही शहर निकल जाना , चाहे जितनी भी महंगी हो , संकल्प खरीद कर ही लौटना । सुने है वहाँ शहर में पढे -लिखो के तबके में ,रोज संकल्प गढे जाते और बेचे जाते है । "
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
भोलुआ की ज़िद पर गढ़ी गयी संकल्प की ये दास्ताँ आपको पसंद आई ,मेरा लिखना सार्थक हुआ। इस प्रोत्साहन के लिए हृदयतल से आभारी हूँ आदरणीया प्रतिभा जी।
बिलकुल सही कह रहे है आप कि भाषा बहुत अभ्यास मांगती है।
व्यंग मेरी विधा नहीं है इसलिए व्यंग की तकनीकों से अनजान हूँ और , इस तरह के लेखन पर ये मेरा पहला प्रयास है।
आपने सराहना की और मेरा मनोबल बढ़ाया इसके लिए तहेदिल आभार आपको आदरणीय प्रदीप नील जी।
संकल्प विषय को पढ़ते ही यु ही मन में आया तो लिख ली थी। आपने सराहना की ,और मेरा हौसला बढ़ाया, आभार आदरणीय नीता जी
कथा के मर्म को समझने के लिए आभार आदरणीय सतविंदर जी।
रचना पर मेरा हौसला बढ़ाने हेतु आभार आपको आदरणीय तेजवीर जी।
संकल्प गुब्बारे की तरह होते हैं कभी हवा भर कर फुला कर उड़ा लो कभी लपेट कर अन्दर रख लो , भोलुआ की नेता बनने की और संकल्प के लिए जिद , बहुत बढ़िया समसामयिक व्यंग रचा है आपने, हार्दिक बधाई स्वीकार करें आप इस रचना पर आदरणीया
अच्छी हास्य रचना , कान्ता जी। बधाई
हाँ , व्यंग्य का पुट थोड़ा और डालती तो
भाषा बहुत अभ्यास मांगती है। अभी तो इसमें बिहार / बंगाल का रंग दिख रहा है
लगी रहें तो एक दिन वंग्य भी लिख सकेंगी। शुभ कामनाएं स्वीकारें ...
हार्दिक बधाई आदरणीय कांता जी!बहुत सटीक व्यंगात्मक रचना!
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