अरकान -1222 1222 1222 1222
मुझे सच को कभी भी झूठ बतलाना नहीं आता|
तभी तो मेरे घर भी यार नज़राना नही आता|
अगर तुम प्यार से कह दो लुटा दूँ जान भी अपनी,
मगर परछाईयों से मुझको टकराना नहीं आता|
तड़पकर भूख से मरना मुझे हर पल गवारा है,
मगर आगे किसी के हाथ फैलाना नहीं अता|
तू कर दे सर कलम मेरा मगर है बेबसी मेरी,
मुझे दिन को कभी भी रात बतलाना नहीं आता|
अगर है शौक पीने का तो ख़ुद जाना तू मयखाने,
किसी के घर तलक चलकर ये मयखाना नही आता|
मौलिक व अप्रकाशित
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अगर है शौक पीने का तो ख़ुद जाना तू मयखाने,
किसी के घर तलक चलकर ये मयखाना नही आता|
वाह इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय।
आदरणीय श्याम वर्मा जी ........ बहुत-बहुत शुक्रिया|
बहुत खूब , पूरी ग़ज़ल बहुत उम्दा है , बहुत बहुत बधाई, सादर ,
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