For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जीवन नमकीन पानी से बनता है (कविता)

भावनाएँ साफ पानी से बनती हैं

तर्क पौष्टिक भोजन से

 

भूखे प्यासे इंसान के पास

न भावनाएँ होती हैं न तर्क

 

कहते हैं जल ही जीवन है

क्योंकि जीवन भावनाओं से बनता है

तर्क से किताबें बनती हैं

 

पत्थर भी पानी पीता है

लेकिन पत्थर रोता बहुत कम है

किन्तु जब पत्थर रोता है तो मीठे पानी के सोते फूट पड़ते हैं

 

प्लास्टिक पानी नहीं पीता

इसलिए प्लास्टिक रो नहीं पाता

हाँ वो ठहाका मारकर हँसता जरूर है

 

पानी शरीर से कभी अकेला नहीं निकलता

वो अपने साथ नमक भी ले जाता है

 

मैं पानी बहुत पीता हूँ

इसलिए मेरे शरीर में अक्सर नमक की कमी हो जाती है

नमक अकेला तो खाया नहीं जा सकता

इसलिए मैं काली चाय की चुस्की के साथ

चुटकी भर नमक खाता हूँ

 

नमक खट्टी और मीठी

दोनों यादों में घुल जाता है

 

नमक और पानी

भौतिक अवस्था और रासायनिक संरचना के आधार पर

बिल्कुल अलग अलग पदार्थ हैं

दोनों को बनाने वाले परमाणु अलग अलग हैं

नमक के परमाणु एक इलेक्ट्रान का लेन देन करते हैं

पानी के परमाणु एक इलेक्ट्रान का साझा करते हैं

फिर भी दोनों एक दूसरे में ऐसे घुल मिल जाते हैं

कि जीभ पर न रखें तो पता ही न चले

 

मिठास पर पलते हैं इंसानियत के दुश्मन

नमकीन पानी नष्ट कर देता है

इंसानियत के दुश्मनों को

 

ज़्यादा पानी और ज़्यादा नमक

शरीर बाहर निकाल देता है

पर मीठा शरीर के भीतर इकट्ठा होता रहता है

पहले चर्बी बनकर फिर ज़हर बनकर

 

पहली बार जीवन नमकीन पानी में बना था

इसलिए जीवन अब हमेशा नमकीन पानी से बनता है

------------------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 719

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 14, 2015 at 11:20pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीया कान्ता जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 14, 2015 at 11:19pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सतविंदर जी

Comment by kanta roy on December 14, 2015 at 8:03am
भावनाओं का संवहन रसायनात्मक दृष्टिकोण से तर्कसंगत लयात्मकता लिये ,वाह ! रचना ने अपनी मौलिकता का एक अलग ही प्रवाह कायम कर लिया है । बधाई प्रेषित है आदरणीय धर्मेन्द्र जी ।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on December 13, 2015 at 2:55pm
वआह्ह्ह्ह्ह्ह् लाज़वाब विचारभिव्यक्ति।बहुत बहुत बधाई आदरणीय
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 13, 2015 at 2:47pm

शुक्रिया डॉक्टर विजय शंकर जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 13, 2015 at 2:47pm

शुक्रिया मिथिलेश जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 13, 2015 at 2:46pm

शुक्रिया लक्ष्मण धामी साहब

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 13, 2015 at 2:45pm

शुक्रिया शेख़ उस्मानी साहब

Comment by Dr. Vijai Shanker on December 9, 2015 at 11:43pm
हक़ तो नमक का ही होता है ,
नमक जीवन का सार होता है।
***************************
दोस्ती में हक़ नमक का
अदा करते रहिये ,
सम्बन्ध ताउम्र
मीठे रहेंगें .....
बहुत खूब , आदरणीय धर्मेन्द्र जी , बहुत सुन्दर विचार एवं प्रस्तुति........ , सादर ?

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 9, 2015 at 4:25pm

आदरणीय बड़े भाई धर्मेन्द्र जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है. हार्दिक बधाई आपको 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Sunday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service