पुलिस चौकी को कार्यक्रम स्थल मे बदल दिया गया है , सामने लोगो का मजमा लगा हुआ है | उसे देखने के लिये सब बडे आतुर है । आज वो आत्मसमर्पण करने वाली है प्रदेश के सी.एम के सामने । तभी पीली बत्ती की गाड़ी भांय-भांय कर कार्यक्रम स्थल मे प्रविष्ट होती है । तथाकथित सारे उच्चाधिकारी उन्हे घेरे खड़े है ।
कडे सुरक्षा कवच के बीच अंतत वह अपनी बंदूक उनके चरणों मे रख आत्मसमर्पण कर देती है । अन्य औपचारिकता के बाद कार्यक्रम समाप्ती की घोषणा हो जाती है ।
सभी समाचार पत्रों के कुछ तथाकथित पत्रकार उसे घेर लेते है ।
पत्रकार--"महिला होकर भी बंदूक थामने की वजह । "
" वर्ग विशेष से सामूहिक बलात्कार और शोषण के खिलाफ़ बदला । "
"मगर आप ऐसे वर्ग से आती है जो मजदूरी कर पेट पालता है । इतने बडे नर संहार की जगह गाँव छोड उनके चंगुल से बचा जा सकता था ।
"शर्म करो तथाकथित पढे-लिखे लोगो-- कब तक और कहाँ तक भागती ,ये तो मेरा पलायन हो जाता अपने अधिकारों के खिलाफ़ आवाज़ उठाने का । "
"तभी दूसरा--- ये काम तो सरकार का था । शिकायत दर्ज की जा सकती थी उनके खिलाफ़ । बंदूक उठाना तो अपराध हुआ । "
"लोगो के सुरक्षा की ज़िम्मेदारी तो सरकार पर है । अपराध तो सरकार कर रही है ऐसे लोगो को संरक्षण देकर वोट के ख़ातिर ।
"तो अब आगे क्या मुफ़्त की रोटी तोड़कर----- । "
"नही-नही!!-अब निकम्मो के खिलाफ़ सरकार मे जाकर बदला लूंगी । ."
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