मानो उन्हें किसी की प्रतीक्षा थी . उनका मन कुछ बैचैन हो रहा था ,वे अंदर ही अंदर कुछ असहाय सा महसूस कर रहे थे .हाथ पीछे की ओर बांधे वे द्वार पर आकर खड़े हो गए तभी उनकी नजर सामने की और गई .वो धीमे-धीमे चलकर वह आती हुई कुछ दूरी पर खड़ी हो गई . दोनों ने एक दूसरे को देखा .
"तुम ? मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा .कितना बदल गई हो ,ये सफेद केश , ये कृश काया..." वे बोले
"फिर तुमने मुझे पहचाना कैसे ?" उसका प्रतिप्रश्न
" तुम्हारी हँसी का वो नूर, चहरे की निश्चलता आज भी वैसी ही है…
ContinueAdded by नयना(आरती)कानिटकर on March 19, 2021 at 10:00pm — 2 Comments
उत्कर्षा का सारा शरीर थककर चूर हो चुका था कब नींद के आगोश में चली गयी पता ही नहीं चला ।
"हे ईश्वर ये किस पाप की सजा दी है तूने ये जन्म देकर जहाँ दो घड़ी का चैन नहीं ।"
"ऐसा क्यों कहती हो ,सतत कर्मशीलता ही तो भरी है मैंने तुम्हारी पेशियों में . क्या गलत किया?"
"प्रभु ! मैं भी कोई मशीन तो नहीं हूँ की ये सतत परिश्रमशीलता.."
"जानता हूँ ये सब सोचकर ही मैंने तुम्हें अष्टभुजा का प्रतिक रूप दिया है।"
"अष्टभुजा??? या कि...सारा श्रेय तो ..किंतु…
Added by नयना(आरती)कानिटकर on May 8, 2020 at 7:52pm — 2 Comments
"मैं आ रही हूँ माँ..."
कितनी बार कहा था माँ ने "बेटा! बस एक बार तुम ग्रेजुएट हो जाओ फिर जहाँ भी किस्मत आजमाना चाहोगी तुम्हें रोकूँगी नही। ये पूरा का पूरा आकाश तुम्हारा हैं।" किंतु तब मैंने उनकी बातों को यूंही हवा में उड़ा दिया था।
संयुक्त परिवार में घर की सबसे खूबसूरत बेटी थी वह। बस! यही ज़रूर उसे ले डूबेगा कहाँ जानती थी। बारहवी के बाद ही अपनी रिश्तेदार के घर इस नगरी में आयी तो वापस लौटी ही नहीं कभी। माँ समझा-बुझाकर ले जाने आई थी उसे तब उन्हें…
ContinueAdded by नयना(आरती)कानिटकर on March 14, 2020 at 4:00pm — 1 Comment
पहन रखा हैं
मैने गले में, एक
गुलाबी चमक युक्त
बडा सा मोती
जिसकी आभा से दमकता हैं
मेरा मुखमंडल
मैं भी घूमती हूँ इतराती हुई
उसके नभमंडल में…
Added by नयना(आरती)कानिटकर on June 20, 2019 at 10:00am — 5 Comments
खुद को भूली वो जब दिन भर के काम निपटा कर अपने आप को बिस्तर पर धकेलती तो आँखें बंद करते ही उसके अंदर का स्व जाग जाता और पूछता " फिर तुम्हारा क्या". उसका एक ही जवाब "मुझे कुछ नहीं चाहिए. कभी ना कभी तो मेरा भी वक्त आएगा. उसे याद है अपने छोटे से घर की…
ContinueAdded by नयना(आरती)कानिटकर on January 6, 2018 at 6:45pm — 3 Comments
"इतना मान-सम्मान पाने वाली, फिर भी इनकी हथेली खुरदरी और मैली सी क्यों है?"-- हृदय रेखा ने धीरे-धीरे बुदबुदाते हुए दूसरी से पूछा तो हथेली के कान खड़े हो गए।
"बडे साहसी, इनका जीवन उत्साह से भरपूर है,फिर भी देखो ना..." मस्तिष्क रेखा ने फुसफुसा कर ज़बाब दिया।
" देखो ना! मैं भी कितनी ऊर्जा लिए यहाँ हूँ, किंतु हथेली की इस कठोरता और गदंगी से.....!" जीवन रेखा भी कसामसाई।
"अरे! क्यों नाहक क्लेष करती हो तुम तीनों? भाग्य रेखा…
Added by नयना(आरती)कानिटकर on October 7, 2017 at 4:00pm — 11 Comments
"तुम रातभर बैचेन थी। हो सके तो आज आराम करो। मैंने चाय बनाकर थर्मस में डाल दी हैं। मैं नाश्ता, खाना आफ़िस में ही ली लूँगा, तुम बस अपना बनवा लेना। आफ़िस से छुट्टी ले लो।"
पास तकिए पर रखे कागज को पढा और चूमकर सीने पर रख लिया। आफ़िस में इस एक दिन के अवकाश की लड़ाई लड़ी और जीती भी थी।
चाय का कप लेकर बालकनी में आई तो सहज ही प्लास्टिक की पन्नियाँ बीनती उन लड़कियों पर नजर गयी। उफ्फ, ये लोग क्या करती होंगी इन दिनों? कप हाथ में लिए-लिए ही झट नीचे आयी। उन्हें आवाज लगाकर अपने…
Added by नयना(आरती)कानिटकर on September 25, 2017 at 9:30pm — 8 Comments
उसने सिला गये बेसन को थाली में फैलाकर चूल्हे की गरम राख को थोडा सार कर उस पर रख दिया था ताकि पसीजन से आई बदबू खत्म हो जाए. आज पहली बार रमेश्या ने उसे ढाई सौ ग्राम तेल लाकर दिया था घर में. वरना तो वह अपनी सारी कमाई शराब में ही फूक देता था. वह भी काम से आते वक्त बीबी जी से दो प्याज माँगकर ले आई थी.
बाहर आसमान भी आज उसके घर में खुशी बरसाने के भाव मे था. चाँद का उजाला ना सही इस छोटे से सुख में घुमडते बादलों सा उसका मन झूम-झूम उठा था.
"आज ही तो तू आई थी मेरे जीवन में…
ContinueAdded by नयना(आरती)कानिटकर on July 31, 2017 at 7:45pm — 11 Comments
"अरे! सुनंदा सुनो भाई कब से फोन पर बातें कर रही हो. चलो अब खाना लगाओ जी. बडी भूख लगी है. क्या इतनी लंबी बातें किए जा रही हो."
"जी! "अंकुर" से. बता रहा आज किसे बिज़नेस …
Added by नयना(आरती)कानिटकर on June 9, 2017 at 10:45pm — No Comments
" हैलो.." ट्रीन-ट्रीन की घंटी बजते ही स्नेहा फोन उठाते हुए बोली
" …
Added by नयना(आरती)कानिटकर on August 28, 2016 at 3:04pm — 12 Comments
पास ही की झुग्गी के बच्चे और यहाँ तक की कुत्ते भी अचानक से उस और दौड़ पडे .
"अरे मुन्ना! वो देख जा जल्दी बहुत सारा खाना आया दिखता है." लूली ने जोर देकर अपने भाई से कहा और …
Added by नयना(आरती)कानिटकर on August 23, 2016 at 10:00pm — 6 Comments
अखबार हाथ में लेकर सृजन लगभग दौड़ते हुए घर मे घुसा।
"मम्मा!, पापा! ये देखो ये तो वही है ने जो हमारे गणपति बप्पा को..."…
ContinueAdded by नयना(आरती)कानिटकर on July 23, 2016 at 3:30pm — 12 Comments
रणवीर सिंह और अशोक कालकर दोनो ने गुड़गाँव मे एक साथ एक मल्टीनेशनल कंपनी ने ज्वाइन किया था । दो भिन्न संस्कृति, मातृभाषा के वे तीसरी तरह की संस्कृति मे रचने-बसने का प्रयत्न करने लगे थे। धीरे-धीरे आपसी मित्रता गहरा गई. ऑफ़िस के …
ContinueAdded by नयना(आरती)कानिटकर on July 21, 2016 at 9:28pm — 4 Comments
शादी मे सारा कुछ अच्छे से निपट गया था।सभी मेहमानों को वापसी उपहार, मिठाईयो के डिब्बे देकर रुखसत किया गया था। घर को भी फ़िर से सवार कर पटरी पर ले आई थी कि अचानक एक सुटकेस और …
ContinueAdded by नयना(आरती)कानिटकर on July 15, 2016 at 8:00pm — 2 Comments
ऑफ़िस से आकर सब काम निपटाते -निपटाते थक कर चूर हो गई थी वह. बस! बर्तन जमा कर दूध मे जामन लगाना शेष था. उसके हाथ तेजी से प्लेटफार्म साफ़ कर रहे थे.पसीने से …
ContinueAdded by नयना(आरती)कानिटकर on July 5, 2016 at 7:00pm — 8 Comments
Added by नयना(आरती)कानिटकर on March 17, 2016 at 11:30pm — 12 Comments
पुलिस चौकी को कार्यक्रम स्थल मे बदल दिया गया है , सामने लोगो का मजमा लगा हुआ है | उसे देखने के लिये सब बडे आतुर है । आज वो आत्मसमर्पण करने वाली है प्रदेश के सी.एम के सामने । तभी पीली बत्ती की गाड़ी भांय-भांय कर कार्यक्रम स्थल मे प्रविष्ट होती है । तथाकथित सारे उच्चाधिकारी उन्हे घेरे खड़े है ।
कडे सुरक्षा कवच के बीच अंतत वह अपनी बंदूक उनके चरणों मे रख आत्मसमर्पण कर देती है । अन्य औपचारिकता के बाद कार्यक्रम समाप्ती की घोषणा हो जाती है ।
सभी समाचार पत्रों के कुछ तथाकथित …
ContinueAdded by नयना(आरती)कानिटकर on December 10, 2015 at 9:26am — 3 Comments
कैलेंडर का पन्ना पलटते ही उसकी नजर तारीख़ पर थम गई। विवाह का दिन उसके आँखो के आगे चलचित्र सा घूम रहा था।.सुशिक्षित खुबसुरत नेहा और आकर्षक व्यक्तित्व के मालिक नीरज की जोडी को देख सब सिर्फ़ वाह-वाह करते रह गये थे.वक्त तेजी से गुज़र रहा था।.
जल्द ही नेहा की झोली मे प्यारे से दो जुडवा बच्चे बेटा नीरव और बेटी निशीता के रुप मे आ गये।.तभी --
वक्त ने अचानक करवट बदली बच्चों के पालन-पोषण मे व्यस्त नेहा खुद पर व रिश्ते पर इतना ध्यान ना दे पाई । उसके के हाथ से नीरज मुट्ठी से रेत की तरह फ़िसलता…
Added by नयना(आरती)कानिटकर on December 8, 2015 at 1:00pm — No Comments
"बादल !! देखो कितनी सुन्दर हरियाली , चलो हम कुछ देर यही टहलते है।"
वो देखो मानव और प्रकृति भी है .संग नृत्य करेगे।.
"बादल ने हवा का हाथ पकडते हुए गुस्से मे कहा-- चलो!! यहाँ से धरती माँ की गोद मे जहाँ सिर्फ़ प्रकृति बहन ही हो. हम वहा नृत्य करेगे".मानव तो कब का उसे छोड चुका है,बेचारी मेरी प्रकृति बहना…
Added by नयना(आरती)कानिटकर on December 5, 2015 at 3:30pm — 2 Comments
सुरेखा कब से देख रही थी आज माँ-बाबूजी पता नहीं इतना क्या सामान समेट रहे है। बीच मे ही बाबूजी बैंक भी हो आए.एक दो बार उनके कमरे मे झांक भी आयी चाय देने के बहाने मगर पूछ ना पाई।
"माँ-बाबूजी नही दिख रहे ,कहाँ है.?"सुदेश ने पूछा
"अपने कमरे मे आज दिन भर से ना जाने क्या कर रहे है। मैं तो संकोच के मारे पूछ भी नही पा रही.तभी---…
Added by नयना(आरती)कानिटकर on December 4, 2015 at 7:00pm — 13 Comments
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |