For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

 खुद को भूली वो जब दिन भर के काम निपटा कर अपने आप को बिस्तर पर धकेलती तो आँखें बंद करते ही उसके अंदर का स्व जाग जाता और पूछता " फिर तुम्हारा क्या". उसका एक ही जवाब "मुझे कुछ नहीं चाहिए. कभी ना कभी तो मेरा भी वक्त आएगा. उसे याद है अपने छोटे से घर की खिड़की के पास हमेशा डेरा डाले रहती.  हाथ में  अभ्यास की पुस्तक और बाहर के आंगन का सारा नज़ारा उसका अपना होता. कभी ढेर सारे तोते आ बैठे अमरुद पर खूब शोर मचाते. कभी-कभी चिड़िया आ बैठती मुंडेर पर वो दौडकर दाना लाती और जैसे ही बिखेरती वो फुर्र से उड जाती मगर फिर धीरे-धीरे उनकी दोस्ती हो गई थी.  घर में सिर्फ़ बाबा थे जो काम पर निकल जाते . माँ तो थी  ही नही जो उसे टोकती क्या ताक-झाक करती रहती है. पेड़ो पक्षियों के बीच  कितना उन्मुकत जीती थी. सोती भी तो खिड़की के नीचे ही बिस्तर लगा कर. आँख खुलती भी उससे छनकर आने वाली रोशनी से तब  जब पक्षियों  का झुंड गुजरता था शोर मचाते हुए उसके सामने से.

" क्या हुआ रमा? नींद में बडा हँस रही हो. कुछ सपना देखा है क्या" कान्हा ने उसे हिलाते हुए पूछा

" नहीं  तो! नही तो! " 
" तुम भी ना पता नहीं किस दुनिया में जीती हो" उठो अब भोर होने को हैं. "

" हा ! कान्हा मैने सपने में उस खिड़की से बगुलो का एक झुंड का झुंड हवा में उन्मुक्त उड़ते देखा ."  अंगड़ाई लेते रमा उठ खड़ी हुई.
" अब ज्यादा उडो मत. ढेर सा काम पडा है." कान्हा ने झल्लाते हुए कहा

उसने अपनी अस्तव्यस्त  साडी को   ठीक किया , खिड़की से छनकर आती सुबह की धूप को प्रणाम किया और  एक निर्णय के साथ बाहर को निकल पडी 
मौलिक व अप्रकाशित

Views: 522

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 10, 2018 at 11:37am

अच्छी कथा हुई है । हार्दिक बधाई।

Comment by नाथ सोनांचली on January 8, 2018 at 1:38pm

आद0 नयना जी सादर अभिवादन।बढ़िया लघुकथा लिखी आजन, इस प्रस्तुति पर बधाई।सादर

Comment by Samar kabeer on January 7, 2018 at 4:03pm

मोहतरमा नयना जी आदाब,अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
12 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
15 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
21 hours ago
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
yesterday
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service