For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रणवीर सिंह और अशोक कालकर  दोनो ने गुड़गाँव मे एक साथ  एक मल्टीनेशनल कंपनी ने ज्वाइन किया था । दो भिन्न संस्कृति, मातृभाषा के वे तीसरी तरह की संस्कृति मे रचने-बसने का प्रयत्न करने लगे थे। धीरे-धीरे आपसी मित्रता गहरा गई. ऑफ़िस के केंटिन मे चाय पीते -पीते रणवीर बोला--

"यार अशोक! ये बता तुम्हारे प्रांत के नेता लोग बडे अजीब है, स्थानीय लोगो को  काम के अवसर खत्म ना हो इसलिए आरक्षण की मांग करते है फ़िर भी तुम अपना प्रांत छोड़कर  यहाँ काम पर आए हो ।"

अशोक  कुछ ना बोला, चुपचाप चाय का घूँट भरता रहा । फिर अचानक बोल उठा..

" यार रणवीर!  ये बताओ तुम्हारे प्रांत के बारे मे भी तो  यह  कहा जाता है कि तुम लोग बडे प्रतिभाशाली और बुद्धिमान होते है ।ज्यादातर ब्युरोक्रेट्स भी वही..."
 
रणवीर के पास भी कुछ जवाब नहीं था ।
बस मौन...

 दोनो एक दूसरे के गले  मे हाथ डाले चल पडे और अपनी-अपनी कुर्सी पर बैठ काम मे मग्न हो गये ।

मौलिक एवं प्रकाशित

Views: 561

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Shubhranshu Pandey on July 24, 2016 at 8:14pm

आदरणीया नयना जी, आदरणीय रवि जी के कथन पर ध्यान दें. वैसे सुन्दर भाव के साथ कथा कही गयी है सादर.

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 24, 2016 at 7:07pm
हार्दिक बधाई
Comment by नयना(आरती)कानिटकर on July 22, 2016 at 12:29pm

आ.रवि प्रभाकर भैया  प्रणाम . आपने लघुकथा को बारिकी से पढ जो सुझाव दिए है उनपर जरुर गौर करती हूँ. असल मे " तुम लोग बडे प्रतिभाशाली और बुद्धिमान होते है ।ज्यादातर ब्युरोक्रेट्स भी वही..."  भी उसी प्रदेश को दर्शाता था सो मैने उसे  अनकहा  रख दिया. रचना लिखने के बाद  " शिर्षक" के लिए पूर एक दिन चिंतन किया लेकिन सफ़लता नही मिली .अब फ़िर से दिमाग पर जोर डालती हूँ.  .आशा करती हूँ आपका मार्गदर्शन मिलता रहेगा. आभार आपका

Comment by Ravi Prabhakar on July 22, 2016 at 7:50am

आदरणीय ताई ! लघुकथा में जो अनकहा छोड़ा गया है / ज्यादातर ब्युरोक्रेट्स भी वही..."/ उस संदर्भ में लघुकथा में कोई संकेत नहीं दिया गया है जिससे लघुकथा कुछ पहेलीनुमा सी बन गई है। यदि उस अनकहे हो आप लघुकथा का शीर्षक बना देती तो ना सिर्फ वह अनकहा आसानी से समझ में आता बल्‍िक शीर्षक ही कथा को परिभाषित कर जाता। पात्रों के नामों का बहुत ही बढ़ीया चयन किया है जिससे उनका प्रदेश सुस्‍पष्‍ट हो रहा है। सादर शुभकामनाएं ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service