For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

शादी मे सारा कुछ अच्छे से निपट गया थासभी मेहमानों को वापसी उपहार,  मिठाईयो के डिब्बे देकर रुखसत किया गया था। घर को भी फ़िर से सवार कर पटरी पर ले आई थी कि अचानक  एक सुटकेस और पर्स के साथ कमरे से आता देख  निमेश  ने पूछा था
"अरे निशी! यू अचानक कहाँ के लिए निकल पडी। कुछ बताया भी नहीं पहले " 
उसकी ओर देखे बिना उसने बस इतना कहा था । " मैने अपने सारे कर्तव्य पूर्ण कर दिए है. अब मेरा यहाँ कोई काम नहीं है अब मैं केवल महरी या मिसराईन  बनकर नही रह सकती मैने अपने लिए नई जगह तलाश ली है। बस वहाँ व्यवस्थित होने के बाद तुम्हें खबर कर दूँगी"
वे उसे जाते देखते रहे । उन्होने एक बार भी कोशिश नही की उसे रोकने की..
बाद में खबर की थी कि वह मुबंई के एक महिला वृद्धाश्रम  मे रहकर उसकी देखरेख का काम सम्हालति  है। वही उसके लिए भी रहने की व्यवस्था है। पता वग़ैरह कुछ नही बताया बस एक फोन न. ज़रुर नोट करा दिया इस हिदायत के साथ कि यहाँ आने की कोई जहमत नहीं उठाएगा। ब्याहता बेटी  नुपूर  तक की कोई खबर कभी नहीं ली  थी उन्होने, रिश्तों  पर ताला डाल दिया था। जिस पर अब जंग चढ़ चुका था। 

वृद्धाश्रम के सालाना जलसे मे अचानक पहली पंक्ति विशेष अतिथि के रुप  मे बैठे जोडे को देख उसकी साँसे धोकनी की तरह चलने लगी.कही ये बेटी...
तभी नूपुर ने उन्हें देखते ही दौडकर उन्हें गले लगा लिया तो उसका बढा पेट उनके पेट से  टकरा गया.आँखो से नदी की धार बह चली. अब एक नवांकुर को जो सिंचना था.

 एक रिश्ता खत्म होने से बाकी रिश्तों पर काटा नहीं फेरा जा सकता। 


मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 448

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by नयना(आरती)कानिटकर on July 18, 2016 at 7:19pm

आ.रक्ताले जी आपने रचना को इतनी गहराई से पढा इस हेतु आभार आपका. दर असल   लघुकथा तकनीक मे ऐसा कहते है कि शब्दो का बार-बार दोहराव ना हो  (वैसे मै अभी सिखने के क्रम मे हू) .इस वजह से एक बार "निमेश" उपयोग मे लने के बाद "वे" शब्द लिखा था. आपकी बात सही लगी उसे " वह" किया जा सकता है. आगे उन्होंने /उसकी/उन्हें /   शब्द भी दोहराव को परे रखने के कारण आए फ़िर भी आपके सुझाव अमूल्य है. आगे की रचना लिखते वक्त ध्यान रखूँगी.

Comment by Ashok Kumar Raktale on July 18, 2016 at 6:24pm

आदरणीया नयना कानिटकर जी सादर, सच कहूँ तो मुझे यह कहानी समझ नहीं आयी है.शुरुआत अच्छी है, मगर पहले यह //वे उसे जाते देखते रहे । उन्होने एक बार भी कोशिश नही की उसे रोकने की..//यहाँ लडखडाती दिखी मुझे लगता है यहाँ  "वे" की जगह "वो" होना था और फिर पूर्ण वाक्य उसी अनुरूप. आगे उन्होंने /उसकी/उन्हें / शब्द भ्रमित करते लगे.इसकी जगह आवश्यकतानुसार सीधे पात्रों के नाम लिखे जाते तो समझने में सुविधा होती. सादर.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service