For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ऑफ़िस से आकर सब काम निपटाते -निपटाते थक कर चूर हो गई थी वह. बस! बर्तन जमा कर दूध मे जामन लगाना शेष था.   उसके हाथ तेजी से  प्लेटफार्म साफ़ कर रहे थे.पसीने से तरबतर पीठ  पर पड़ती उसकी नजर भी उसे चुभने लगी थी.
" माँ! रीना-टीनू का समवेत स्वर गूँजा था" किंतु उसने उनकी बात सुने बिना ही चिल्ला कर कहा था
"जब देखो तब माँ-माँ दोने बडे हो गये हो अपने-अपने काम करना कब सिखोगे. जाओ खुद अपना बिस्तर लगाओ और अपना सारा स्टडी टेबल भी समेट के रखना."   
वो शरीर को बस गद्दे पर झोंकना चाहती थी की रोज की दिनचर्या का एक और काम उसने निपटा दिया था वो पीठ घुमाकर सो भी गया था. क्या सारे कर्तव्य बस उसी के है. अब उसकी आँखो से नींद दूर जा चुकी थी. बेचारे बच्चे, सारा क्लेश उन पर उड़ेल दिया कितने मासूम और छोटे है अभी. उसकी नज़रें छत पर टिक  गई जहाँ उसे बस सुराख ही सुराख नजर आ रहे थे.  सारे आँसू तो पहले ही  सूख चुके थे.

 उसे अपनी दुखती गर्दन की याद आ गई. बाम की शीशी ढूँढते-ढूँढते बच्चों के कमरे मे गई. दोनो बस बीना कुछ ओढे ऐसे ही सो गये थे. उनकी मासूमियत पर तरस आ गया . उन्हें चादर ओढाने  झुकी ही थी कि हलचल से  रीना जाग गई  .टीनू ने  बंद मुट्ठी खोलते उसने झंडू बाम की शीशी आगे बढाते  हुए कहा ...

"मम्मा आपकी नेक मे पेन है ना, मैने देख लिया था काम करते-करते आप बार-बार दबा रही थी. मै आया था आपको देने पर आप तब तक अपने  कमरे मे जा चुकि थी. "
दोनो बच्चो के  बाम मलते कोमल हाथो के  स्पर्श से वह अपने अश्रु नहीं रोक पाई, इसका मतलब वह रोना नहीं भुली थी. 
दोनो को बाहो में भर कर सोते हुए डबडबाई आँखे से भी अब छप्पर उसे साफ़ नजर आ रहा था.

 मौलिक एंव अप्रकाशित

Views: 685

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by नयना(आरती)कानिटकर on July 12, 2016 at 1:00pm

आ.सुशील सरणा  जी,आ.राजेन्द्र दुबे जी , आ.विजय निकोरे जी बहुत-बहुत आभार आपका.
आ. नीता दीदी आपकी टिप्पणी ने मन मोह लिया

Comment by vijay nikore on July 10, 2016 at 2:18pm

आपकी यह अति मार्मिक सुन्दर लघुकथा हृदय को छू गई।

हार्दिक बधाई, आदरणीया नयना जी।

Comment by Nita Kasar on July 9, 2016 at 8:38pm
महिला मन की व्यथा को कथा में उँडेल कर रख दिया,बच्चे इतने मासूम है वे माँ की पीड़ा समझते है पर पति वे बड़े है समझदारी की उम्मीद तो उसे करना ही चाहिये ।आखिर कब तक वह अपने आप को तकलीफ़ देती रहेगी बधाई आपको आद० नयना जी ।
Comment by Rajendra kumar dubey on July 8, 2016 at 10:03am
आदरणीय नयना जी बहुत हृदय स्पर्शी लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई।
Comment by Sushil Sarna on July 7, 2016 at 2:13pm

अादरणीया नयना जी बहुत ही मार्मिक और शीर्षक को सार्थक करती इस लघुकथा की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई। इस कथा मेंं ये भाव ''टीनू ने बंद मुट्ठी खोलते उसने झंडू बाम की शीशी आगे बढाते हुए कहा ...'' अत्यंत मार्मिक लगा। इस भाव से अांखों मेंं नमी अा गयी। पुनः हार्दिक बधाई।

Comment by नयना(आरती)कानिटकर on July 7, 2016 at 1:53pm

आ.प्रतिभा दीदी एवं आदरणिय शेख साहब आप को अनेकानेक धन्यवाद रचना पर समय देकर सराहने के लिए

Comment by pratibha pande on July 6, 2016 at 7:33pm

सच है,एक स्त्री   बच्चों से मिले प्रेम  में अपना दुःख भूल जाती है,हार्दिक बधाई   

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on July 6, 2016 at 5:03pm
शीर्षक को परिभाषित व पुष्ट करती बढ़िया भाव पूर्ण रचना के लिए हृदयतल से बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीया नयना (आरती) कानिटकर जी। सारे दायित्व निभाती पत्नी व माँ का दर्द केवल संतान ही कुछ सीमा तक कुछ समय तक समझ पाती है।
// वो पीठ घुमाकर सो भी गया था. क्या सारे कर्तव्य बस उसी के है.// बहुत ख़ूब.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service