For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हैलो.." ट्रीन-ट्रीन की घंटी बजते ही स्नेहा फोन  उठाते हुए बोली
हैलो स्नेह! कैसी हो. बहुत व्यस्त हो क्या." उधर से बडे भैया की आवाज थी.
अरेभैया व्यस्त ही नही अस्तव्यस्त भी हूँ."
" क्यो क्या हुआ..."
"क्या बताऊँ  समझ नही पा रही. तुमने जो रिश्ता सुझाया था ना अपनी भांजी ले लिए कहती है प्रोफ़ाइल तो अच्छा है. मगर पाँच साल बडा है वो मेरे सामने अंकल लगेगा. आजकल तो एक साल मे ही गेनेरेशन गेप आ जाता है माँ. अब तुम ही  बताओ मैं तो थक गई हूँ समझा कर भी और..."
" बहना! इधर भी यही हाल है. सोमेश को कोई भी लड़की दिखाओ कहता है पापा! मुझसे पाँच- छह साल छोटी हो वरना शादी के एकाध साल मे ही वो आंटी दिखने लगेगी."
"सच! बहुत मुश्किल है दादू इस पीढी को समझाना."
"कोई ना छोटी संक्रमण काल है ये हमारी पीढी का."
ना तो  पुराना सहेजा जा रहा और  ना ही नई पीढी के साथ सामंजस्य बैठ रहा.

मौलिक एंव अप्रकाशित

Views: 838

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on August 29, 2016 at 9:37pm

अंतिम पंक्ति के द्वारा कमाल की बात कहलवा दी आपने आदरणीया  नयना जी, बहुत बधाई इस रचना के सृजन हेतु|

Comment by नयना(आरती)कानिटकर on August 29, 2016 at 7:26pm

आ.प्रतिभा दीदी  आपने बिलकूल सही कहा हम जरुरतो के हिसाब से अपने मूल्य बदलते जा रहे है.आपका हौसला अफ़जाई के लिए आभार

Comment by नयना(आरती)कानिटकर on August 29, 2016 at 7:24pm

आ.उस्मानी जी तहेदिल से शुक्रिया आपका. संपादन की तृटियो को आगे की रचनाओ मे ज्यादा ध्यान से सुधारने का प्रयत्न करूंगी. आपने बहूत ही सार्थक हायकू रचे है.

दर-असल सबसे ज्यादा भ्रम की स्थिती मे हमारी पीढी है जो आधुनिक(प्रगतिशील) तो कहलाना चाहती है किंतू  फ़िर गिरते मूल्यों को देख फ़िर एक कदम पिछे खिंच लेती है, बहरहाल आपने रचना को दिल से समय दिया इस हेतू पुन: आभार

Comment by नयना(आरती)कानिटकर on August 29, 2016 at 7:05pm

आ.राजेश दीदी आपने रचना को सराह कर मेरा उत्साहवर्धन किया है.आभार आपका

Comment by नयना(आरती)कानिटकर on August 29, 2016 at 6:52pm

आ.समर कबीर साहेब सलाम वाले कूम . रचना पर पहली उपस्थिती के लिए दिल से शुक्रिया.

Comment by pratibha pande on August 29, 2016 at 9:21am

तथाकथित आधुनिक समाज की सोच अधकचरी होती जा रही है  अपनी सहूलियतों के हिसाब से  जीवन मूल्य  बदले जा रहे हैं  ... कथा का शिल्प  कसा हुआ है और अपना मर्म संप्रेषित करने में पूरी तरह सफल है ....  बधाई प्रेषित है आपको आदरणीया नयना जी 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on August 28, 2016 at 11:15pm
आपकी प्रस्तुति से संबंधित कुछ हाइकू लिखने का प्रयास किया है, सादर अवलोकनार्थ-

टूटती शाखें
संस्कृति संस्कार की
पश्चिमी आँधी.
*

पीढ़ी-अंतर
पाश्चात्य संक्रमण
मतांतरण
*
फैशन कीड़ा
आन-बान या शान
विदेशी बीड़ा
*
लफ़्ज़ों की चोट
ख़ामोशियों के ज़ख़्म
भाव विस्फोट
*
__शेख़ शहज़ाद उस्मानी
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on August 28, 2016 at 10:45pm
प्रस्तुतीकरण ज़रा गंभीर हो सकता था।
Comment by Dr. Vijai Shanker on August 28, 2016 at 10:43pm
आदरणीय सुश्री नयना ( आरती ) कानिटकर जी , अच्छी कहानी लिखी , शीर्षक भी सटीक है।
वास्तव में संस्कार विस्मृत हो रहे हैं , किसी भी संक्रमण में संस्कार ही संभाले रहते हैं , पर हमारे यहां संक्रमण का अंतराल एक युग जैसा हो गया है।
सम्प्रति , बहुत बहुत बधाई , आपको , सादर।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on August 28, 2016 at 10:34pm
इस बार तो आपने ग़ज़ब कर दिया बेहतरीन कथानक पर लघु लघुकथा रच कर। बहुत ही समसामयिक ज्वलंत मुद्दे को बेहतरीन कथ्य सम्प्रेषित करती रचना में उठाकर! तहे दिल से बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएँ आपको आदरणीया नयना आरती कानिटकर जी। बस सम्पादन में ज़रा चूक हो गई है। अंतिम वाक्य क्या अंतिम संवाद में सम्मिलित है? विराम चिन्ह टंकण त्रुटियां भी रह गईं हैं। 'जनरेशन गैप ( पीढ़ी-अंतराल)' को सही कर दीजिएगा।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service