क्या कसूर था उसका ? मन बेबस हो ,बार - बार डायरी के पन्ने पर लिखे उसके नाम पर जाकर ठहर जाती थी। एकटक देखती जाती ,मानो नाम में उसके अक्स दिखते हों , इबारत कर रही थी वह ....! अंगुलियों को फिराते हुए सहला रही थी उन जख्मों को भी , जो वह दे गया था ।
"उमाsss ! कहाँ भावमग्न हो रही है तु ?"
"कहीं नहीं रे ? "- उसने चौंक कर डायरी बंद कर ली , शायद फिर से चोरी पकड़ी गई थी । जिगरी थी और बरसों से रूम पार्टनर भी।
"तुमने सीधी माँग काढ़ ली ? फिर से उसकी याद लेकर बैठ गई क्या ? "
" वह कहता था मेरे तीखे ,सलोने नैन -नक्श पर यह बहुत फबते है । " उसके आँखों में करूण भाव तैर गये ।
" इस द्वंद से निकलो , नहीं तो जी नहीं पाओगी " गंम्भीर स्वर में कहते हुए वह अंदर तक सिहर उठी।उसकी व्यथा - वेदना की सालों से गवाह रही हैै ।
" उसने कहा था मेरा इंतज़ार करना " आर्तनाद करती जैसे छल से छलक पडीं ।
" चार साल हो गये है , एकबार पलट कर फोन नहीं किया उसने , मैने कहा था तुझसे कि शहर से बाहर जाते ही पलट कर एकबार भी नहीं देखेगा "
" मुझे बात नही करनी है इस विषय में , मेरी आज की डाक कहाँ है ? " हाथ पकड़ कर आगे कहने से रोक लिया ।शायद सच को स्वीकारना नहीं चाहती ।
" यह ले ,मर-खप सारी जिंदगी इन्ही दफ्तरों के डाक समेटती , मुझसे कुछ ना छुपा है तेरा , मालूम है मुझे , तू क्या ढूंढा करती है इनमें। " कहती हुई बाहर की तरफ चली गई ।
उस बेवफा से एक तरफा रूहानी -रिश्ता .......! इस अभागी को बता भी नहीं सकती कि उसने तो पिछले साल ही मिठाई के डब्बे के साथ शादी का कार्ड भेजा था । चुल्हा में फेंका हुआ कार्ड तो जल गया पर , यह अधजली .......!
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
वाऊऊउ -------आदरणीया मैं तो इसके शिल्प पर मुग्ध हूँ . किस ख़ूबसूरती स आपने अपना अभिप्रेत व्यक्त किया है . हजारों बधाइयाँ .
// " मुझे बात नही करनी है इस विषय में , मेरी आज की डाक कहाँ है ? " हाथ पकड़ कर आगे कहने से रोक लिया ।शायद सच को स्वीकारना नहीं चाहती //....
ऐसा कितनी बार होता है.. कि सच्चाई को जानकर भी मन नहीं मानता.... बुझी हुई राख में चिंगारी को ढूँढ्ता रहता है।
हार्दिक बधाई, आदरणीया कांता जी।
मेरे शब्दों को माने देने का हार्दिक आभार आदरणीय कांता रॉय जी।
obo मंच की सार्थकता को पूर्ण करती आपकी ये टिप्पणी बहुत सटीक है। रचना को पसंद एवं मार्गदर्शन के लिए तहे दिल शुक्रिया आपका आदरणीय सुशील सरना जी। मैं अभी एडिट करके इसे ठीक करती हूँ। सादर।
चुल्हे में फेंका हुआ कार्ड तो जल गया पर , यह अधजली .......!
वाह बहुत सुंदर। ...... अंतर्मन की गहन भावनाओं का बहुत ही सुंदर चित्रण किया है आपने। ये पंच लाईन शीर्षक को सार्थक कर रही है। इस सुंदर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई आदरणीया कांता रॉय जी। कुछ स्थानों पर टंकण त्रुटि शायद शीघ्रतावश हुई है जैसे चुल्हे ,'' वह'' चौंक कर डायरी बंद कर ली-इसमें वह के स्थान पर शायद उसने होना चाहिए। ये मेरा विचार है हो सकता है आप सही हों - कृपया अन्यथा न लेवें। धन्यवाद।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online