For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कुछ छन्नपकैया सारछन्द (एक प्रयास)

छन्न पकैया छन्न पकैया,ओ.बी.ओ है बहतर
सारी बातें हो जाती हैं,यहाँ अदब में रहकर

छन्न पकैया छन्न पकैया, प्रभू की है माया
आज हुवा जाता है देखो,अपना ख़ून पराया

छन्न पकैया छन्न पकैया ,मंहगी बहुत दवाई
बिन इलाज के मर गए देखो,अपने बाबू भाई

छन्न पकैया छन्न पकैया,बढ़ा लो सब नाख़ून
इस दुनिया में लागू होगा,जंगलों का क़ानून

छन्न पकैया छन्न पकैया,वाणी अच्छी बोली
जब भी अपने लब खोलो तो बोलो सच्ची बोली

छन्न पकैया छन्न पकैया ,ग़ज़लें कहते कहते
सार छन्द में डूब न जाऐ ,"कबीर" बहते बहते

"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित

Views: 809

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on December 24, 2015 at 4:58pm
जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब,अब मैं पूरी बात समझ गया,आगे से ध्यान रखूंगा,मार्गदर्शन के लिये भू
बहुत बहुत धन्यवाद |

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 24, 2015 at 2:51pm
आदरणीय समर कबीर जी, मैं सार छंद के चरणान्त के सम्बन्ध में निवेदन कर रहा था। पदों के किसी चरणान्त में तगण (ऽऽ।, २२१), रगण (ऽ।ऽ, २१२), जगण (।ऽ।, १२१) का निर्माण नहीं होना चाहिए। सादर
Comment by Samar kabeer on December 24, 2015 at 2:26pm
जनाब गिरिराज भंडारी जी आदाब,"प्रभु"की मैं चार मात्रा गिन रहा था,इस कारण ये भूल हुई,आइन्दा ध्यान रखूँगा,एक बात ये कि "ईश्वर"या "इश्वर"क्योंकि ईश्वर मैं पांच मात्रा हैं या चार,पुनः मार्गदर्शन करें,एक बार फिर आपको धन्यवाद,स्नेह बनाए रखयेगा |

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 24, 2015 at 12:18pm

आदरनीय समर भाई , प्रभु की मात्रा 2 होती है , इस लिहाज से पद मे , 

प्रभू की है माया   --  2 मात्रा कम है , अतः आप  इसे  -- ईश्वर की है माया --   किया जा सकता है ।

नाखून और कानून की  तुकांतता सही है , ब स अगर  व्यंजन भी लिल जाये तो उस तुकांतता को सबसे अच्छा माना जाता है , लेकिन ये गलत नही है । अगर मिथिलेश भाई जी का इशारा और कुछ है तो वही बता सकते हैं ।

Comment by Samar kabeer on December 24, 2015 at 11:54am
जनाब गिरिराज भंडारी जी आदाब , ये सब आपकी और जनाब सौरभ पांडे जी की हौसला अफ़ज़ाई का ही नतीजा है , और इसका श्रेय मैं आप दोनों को ही देना चाहूँगा , जनाब मिथिलेश जी की बात पूरी तरह मेरी समझ में नहीं आसकी उनसे पुनः समझाने का आग्रह किया है , आपसे भी निवेदन है कि इस बारे में कहाँ मुझसे त्रुटि हुई है मुझे ज़रूर बताएँ,रचना की सराहना , मार्गदर्शन के लिए आपका तहे दिल से धन्यवाद ।
Comment by Samar kabeer on December 24, 2015 at 11:45am
जनाब लक्ष्मण धामी जी आदाब,अन्यथा लेने की क्या बात है,अभी तो आप से बहुत कुछ सीखना है,रचना की सराहना के लिए दिल से धन्यवाद |
Comment by Samar kabeer on December 24, 2015 at 11:20am
जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब,हौसला अफ़ज़ाई और मार्ग दर्शन के लिए दिल से शुक्रिया,"प्रभु"की मात्र दो हैं या तीन ?"नाखून"और "क़ानून"में तुकान्त ता नहीं है क्या,बराह_ए_करम तफ़सील से बताने का कष्ट करें ताकी आगे ग़लती न हो |

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 24, 2015 at 11:14am

आदरणीय समर भाई , छंद रचना मे आपने बड़ा ही धमाकेदार प्रवेश किया है , सफल प्रथम प्रयास के लिये हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें । आदरणीय मिथिलेश भाई जी बातों का खयाल कीजियेगा ।

Comment by Samar kabeer on December 24, 2015 at 11:06am
बहना राजेश कुमारी जी आदाब,ये सब जनाब गिरिराज भंडारी जी और जनाब सौरभ पांडे जी की हौसला अफजाई का नतीजा है,छन्द आपको पसन्द आगये मेरा लिखना सार्थक हुआ,दिल से शुक्रिया,मार्गदर्शन अपेक्षित है|
Comment by Samar kabeer on December 24, 2015 at 10:55am
जनाब रवि शुक्ल जी आदाब,मेरी कोशिश आपको पसन्द आई लिखना सफल हुआ,हौसला अफ़ज़ाई का दिल से शुक्रिया मार्गदर्शन अपेक्षित है|

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . जीत - हार

दोहा सप्तक. . . जीत -हार माना जीवन को नहीं, अच्छी लगती हार । संग जीत के हार से, जीवन का शृंगार…See More
14 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में आपका हार्दिक स्वागत है "
14 hours ago
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"ओबीओ…See More
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक- झूठ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी उपस्थिति और प्रशंसा से लेखन सफल हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . पतंग
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय "
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को मान देने एवं सुझाव का का दिल से आभार आदरणीय जी । "
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . जीत - हार
"आदरणीय सौरभ जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया एवं अमूल्य सुझावों का दिल से आभार आदरणीय जी ।…"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। सुंदर गीत रचा है। हार्दिक बधाई।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। सुंदर गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।भाई अशोक जी की बात से सहमत हूँ। सादर "
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"दोहो *** मित्र ढूँढता कौन  है, मौसम  के अनुरूप हर मौसम में चाहिए, इस जीवन को धूप।। *…"
Monday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"  आदरणीय सुशील सरना साहब सादर, सुंदर दोहे हैं किन्तु प्रदत्त विषय अनुकूल नहीं है. सादर "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service