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आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। सार्थक सार छन्द हुए हैं हार्दिक बधाई।
वाह वाह आ० समर भाई जी,आपको छंद लिखते देखना बड़ा सुखद लगता है आपकी बेहतरीन कोशिश पर दिल से बधाई दे रही हूँ बाकी आ० सौरभ जी ने बता ही दिया |
अव्वल तो आदरणीय समर कबीर साहब, दिल से बधाई लीजिये कि आपकी कोशिश सिर चढ़ कर बोल रही है. और हम बार-बार अभिभूत हुए जा रहे हैं. आपने जिस अंदाज़ में सार छन्द के छन्न पकैया प्रारूप को अपनाया है वह प्रेरक है. यह आपका पहला प्रयास है सो कुछ असंगतियाँ स्वाभाविक है लेकिन आप सहजता से इनसे पार पा लेंगे.
कुछ बातें ध्यान देने योग्य है, वो ये कि कोई पंक्ति स्पष्ट चरणों में हो.
इस हिसाब से क्यूँकि अपने साथ साथ औरों का दुःख भी ढोते के चरण स्पष्ट नहीं हैं. अर्थात १६ वीं मात्रा शब्द के बीच में पड़ती है. यह कुछ-कुछ शिकस्ते नार’वा के ऐब जैसा है.
दूसरे, किसी चरण (इस छन्द की एक पंक्ति में दो चरण होते हैं, १६-१२ की यति पर) का अन्त जगण या आभासी जगण (१२१) या फिर रगण या अभासी रगण (२१२)) से नहीं हो सकता. जैसाकि एकदो जगह हो गया है. इस हिसाब से रमेश या क्लेश की तुकान्तता नहीं बन सकती.
बाकी आपका प्रयास स्तुत्य है. हार्दिक बधाइयाँ व शुभकामनाएँ, आदरणीय
जभी निवाला
बेहद उम्दा ...बहुत बहुत बधाई आप को आदरणीय | सादर |
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