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गाँधी जी का तीसरा बंदर (लघुकथा)

"क्या बात है?" घर पहुँचते ही उसकी माँ ने उसकी आँखों में आँसू और पिता की आँखों में चिंता को देखकर घबरा कर पूछा|

उसके पिता ने बताया, "सेठ जी के बेटे और सामने वाले भाईसाहब की बेटी के बीच कुछ चल रहा था, इसे सब बात पता थी| अब कल किसी बात पर उस लड़की ने आत्महत्या कर ली, तो आज ये पुलिस को सब बातें बताने लगी| वो तो ऐन वक्त पर मैनें भीड़ का फायदा उठा कर इसका मुंह बंद कर दिया नहीं तो....."

"नहीं तो क्या बाबूजी?" उसने पूछा

"किसी के फटे में हम टांग क्यों डालें? तू चुप नहीं रह सकती?" कहते हुए उसके पिता यह देख कर चौंके कि उसने आले में रखे हुए गांधीजी के तीन बंदरों में से एक बंदर को उठा कर घर से बाहर फैंक दिया|

"... अब यह क्या कर रही हो? उसे क्यों फैंका - बुरा मत कहो वाला बंदर?"

"उसकी क्या ज़रूरत है? मैं हूँ ना बाबूजी|"

(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on December 30, 2015 at 12:06am

बहुत बहुत आभार आदरणीय  नीता कसार जी, आपको लघुकथा का यह प्रयास ठीक लगा और आपने अपनी टिप्पणी द्वारा मेरी हौसला अफजाई की |

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on December 30, 2015 at 12:05am

रचना को पसंद कर मेरा मनोबल बढाने हेतु हार्दिक आभार आदरणीय जवाहर लाल सिंह जी |

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on December 30, 2015 at 12:04am

हृदय से शुक्रिया आदरणीय डॉ. आशुतोष मिश्रा जी |

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on December 30, 2015 at 12:04am

रचना को पसंद करने और मेरे उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार आदरणीया  राजेश जी, वास्तव में लोगों की यही मानसिकता है कि दूसरों के फटे में पैर क्यों डालें, ऐसी स्थिति आते ही अधिकतर लोग यूं ही करते हैं|

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on December 30, 2015 at 12:02am

सही कहा निधि जी, अब एक ऐसा बंदर है जो बुरा सच नहीं कहेगा| आभार आपका |

Comment by Nita Kasar on December 29, 2015 at 1:06pm
सच कड़वा होता है हर कोई पचा लें ज़रूरी नही चश्मदीद और सबूतों के बिना यक़ीन कौन करेगा बेहतर कथा के लिये बधाई आद०चन्द्रेश छतलानी जी ।
Comment by JAWAHAR LAL SINGH on December 28, 2015 at 8:57pm

बेहतरीन लघु कथा हुई है आदरणीय चंद्रेश कुमार जी!

Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 28, 2015 at 8:30pm

बेहतरीन 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 28, 2015 at 7:27pm

सही कहा निधि जी ने बुरा मत कहो के स्थान पर कुछ न कहो या सच न कहो बंदर रख दीजिये |यही तो लोगों की मानसिकता है की दूसरे  की मुसीबत में क्यों पड़ें |बहुत अच्छी लघु कथा हार्दिक बधाई चंद्रेश कुमार जी 

Comment by निधि जैन on December 28, 2015 at 6:25pm
बुरा मत कहो वाला बंदर की जगह न बोलने वाला बन्दर रख दिया जाएगा

बढ़िया

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