"क्या बात है?" घर पहुँचते ही उसकी माँ ने उसकी आँखों में आँसू और पिता की आँखों में चिंता को देखकर घबरा कर पूछा|
उसके पिता ने बताया, "सेठ जी के बेटे और सामने वाले भाईसाहब की बेटी के बीच कुछ चल रहा था, इसे सब बात पता थी| अब कल किसी बात पर उस लड़की ने आत्महत्या कर ली, तो आज ये पुलिस को सब बातें बताने लगी| वो तो ऐन वक्त पर मैनें भीड़ का फायदा उठा कर इसका मुंह बंद कर दिया नहीं तो....."
"नहीं तो क्या बाबूजी?" उसने पूछा
"किसी के फटे में हम टांग क्यों डालें? तू चुप नहीं रह सकती?" कहते हुए उसके पिता यह देख कर चौंके कि उसने आले में रखे हुए गांधीजी के तीन बंदरों में से एक बंदर को उठा कर घर से बाहर फैंक दिया|
"... अब यह क्या कर रही हो? उसे क्यों फैंका - बुरा मत कहो वाला बंदर?"
"उसकी क्या ज़रूरत है? मैं हूँ ना बाबूजी|"
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
बहुत बहुत आभार आदरणीय नीता कसार जी, आपको लघुकथा का यह प्रयास ठीक लगा और आपने अपनी टिप्पणी द्वारा मेरी हौसला अफजाई की |
रचना को पसंद कर मेरा मनोबल बढाने हेतु हार्दिक आभार आदरणीय जवाहर लाल सिंह जी |
हृदय से शुक्रिया आदरणीय डॉ. आशुतोष मिश्रा जी |
रचना को पसंद करने और मेरे उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार आदरणीया राजेश जी, वास्तव में लोगों की यही मानसिकता है कि दूसरों के फटे में पैर क्यों डालें, ऐसी स्थिति आते ही अधिकतर लोग यूं ही करते हैं|
सही कहा निधि जी, अब एक ऐसा बंदर है जो बुरा सच नहीं कहेगा| आभार आपका |
बेहतरीन लघु कथा हुई है आदरणीय चंद्रेश कुमार जी!
बेहतरीन
सही कहा निधि जी ने बुरा मत कहो के स्थान पर कुछ न कहो या सच न कहो बंदर रख दीजिये |यही तो लोगों की मानसिकता है की दूसरे की मुसीबत में क्यों पड़ें |बहुत अच्छी लघु कथा हार्दिक बधाई चंद्रेश कुमार जी
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