For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दुष्यंत कुमार को समर्पित मेरी एक ग़ज़ल

आपकी तालीम का हर अर्थ कुछ दोहरा तो है

आकाश पर बादल नहीं पर हर तरफ कोहरा तो है

 

बादशाहों की हमेशा ज़िन्दगी महफूज़ है

लड़ने-मरने के लिए शतरंज में मोहरा तो है

 

इस महल में अब खज़ाना तो नहीं बाकी रहा

द्वार पर दरबान है, संगीन का पहरा तो है

 

शोर करना हर नदी की चाहे हो आदत सही

ये समंदर हर नदी से आज भी गहरा तो है

 

तुम क़सीदे खूब पढ़ लो पर यहाँ हर आदमी

हो न गूंगा आज लेकिन, आज भी बहरा तो है

 

तुमने कांटे साफ़ कर आसां किया चाहे सफ़र

दूर तक है धूप अब भी, दूर तक सहरा तो है

 

"मौलिक व अप्रकाशित"

- डॉ. राकेश जोशी

Views: 1041

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Rakesh Joshi on January 8, 2016 at 10:10pm

आदरणीय  Ravi Shukla जी,

सादर नमस्कार.

मेरी ग़ज़ल पर आपकी टिप्पणी के लिए आपको धन्यवाद.

मैं आपका आभारी हूँ.

सादर,

डॉ. राकेश जोशी

Comment by Dr. Rakesh Joshi on January 8, 2016 at 10:01pm
आदरणीय LOON KARAN CHHAJER जी,
सादर नमस्कार.
मेरी ग़ज़ल पर आपकी टिप्पणी के लिए आपको धन्यवाद.
मैं आपका आभारी हूँ.
सादर,
डॉ. राकेश जोशी
Comment by LOON KARAN CHHAJER on January 8, 2016 at 5:53pm

तुम क़सीदे खूब पढ़ लो पर यहाँ हर आदमी

हो न गूंगा आज लेकिन, आज भी बहरा तो है

बहुत शानदार गजल। लगता है दुष्यंत जी का बहुत असर है। 

Comment by Ravi Shukla on January 8, 2016 at 5:20pm

आदरणीय डॉ राकेश जी  ग़ज़ल के लिये आपको बहुत बहुत बधाई । आपकी गजल के हवाले से आदरणीय समर साहब से काफी जानकारी मिली उनका भी बहुत बहुत आभार यही वो उपलब्धि है जो यहां सीखने और सिखाने के सूत्र वाक्‍य से हम  ग्रहण करते है  चर्चा काफी अच्‍छी रही आप सभी का आभार । सादर

Comment by Dr. Rakesh Joshi on January 7, 2016 at 8:24pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, 
सादर नमस्कार. 
मेरी ग़ज़ल पर आपकी टिप्पणी के लिए आपको धन्यवाद. 
मैं आपका आभारी हूँ. 
सादर,
डॉ. राकेश जोशी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 7, 2016 at 6:15pm

आदरनीय डा. राकेश भाई , स्व. दुश्यंत कुमार की जमीन पर बहुत खूब सूरत गज़ल कही है , आपको दिली मुबारक बाद ग़ज़ल के लिए ।
मै भी आदरनीय समर भाई जी की सलाह से सहमत हूँ -- आपकी गज़ल मे क़ाफिया दोष पूर्ण है , खयाल कीजियेगा ।

मतले मे -- कोहरा और मोहरा शब्द लेकर आपने काफिया - ओहरा तय किया है , इस्के अनुसार आपका - पहरा , गहरा सहरा और बहरा  को हम काफिया लेना गलत है । यहाँ आपका काफिया -  अहरा  - तय हो रहा है ॥

Comment by Samar kabeer on January 6, 2016 at 12:23pm
जनाब राकेश जोशी जी,आदाब,दुष्यंत कुमार को मैंने पढ़ा ही नहीं,क़रीब से सुना भी है,दुष्यंत कुमार उर्दू भाषा बहुत अच्छी तरह जानते थे,और उर्दू शब्दों की अदायगी सही तसलफ़्फ़ुज़ के साथ करते थे,ये उनकी बड़ी ख़ूबी थी ,ज़्यादातर ग़ज़लकार ऐसे मौक़े पर दुष्यंत कुमार की ग़ज़ल का हवाला देते हैं,दुष्यंत कुमार की ग़ज़ल में 'अलिफ़' का क़ाफ़िया है जो आज़ाद है,आपका क़ाफ़िया है 'हरा' अब इस क़ाफ़िये का पहला शब्द 'को' ,'मो','दो' से शुरू हो रहा है और मतले के दोनों मिसरों में इसी क़ाफ़िये का पालन किया गया है इसलिए ग़ज़ल विधा के अनुसार अगले शैरों में भी इसकी पाबन्दी करना लाज़िम हो जाता है,इसलिये आपकी ग़ज़ल में क़ाफ़िया दोष है,इसे दूर करने की कोशिश करें,मेरी बात को कृपया अन्यथा न लें ।
Comment by Dr. Rakesh Joshi on January 5, 2016 at 9:02pm

आदरणीय समर कबीर जी,

सादर नमस्कार.

मेरी ग़ज़ल पर आपकी टिप्पणी के लिए आपको धन्यवाद.

मैं आपका आभारी हूँ.

ग़ज़ल के तकनीकी पक्ष में मैं ज़रा कमज़ोर हूँ. शब्द की त्रुटि स्वीकार्य है. ट्रांस्लितेरते करने में अक्सर ऐसा हो जाता है, पर कमी मेरी है. रहा सवाल क़ाफ़िए का तो

दुष्यंत कुमार की एक ग़ज़ल है शायद इससे कुछ बात बने:

 

एक कबूतर चिठ्ठी ले कर पहली-पहली बार उड़ा
मौसम एक गुलेल लिये था पट-से नीचे आन गिरा

बंजर धरती, झुलसे पौधे, बिखरे काँटे तेज़ हवा
हमने घर बैठे-बैठे ही सारा मंज़र देख लिया

चट्टानों पर खड़ा हुआ तो छाप रह गई पाँवों की
सोचो कितना बोझ उठा कर मैं इन राहों से गुज़रा

सहने को हो गया इकठ्ठा इतना सारा दुख मन में
कहने को हो गया कि देखो अब मैं तुझ को भूल गया

धीरे-धीरे भीग रही हैं सारी ईंटें पानी में
इनको क्या मालूम कि आगे चल कर इनका क्या होगा

सादर,

डॉ. राकेश जोशी

Comment by Dr. Rakesh Joshi on January 5, 2016 at 8:45pm

आदरणीय सुशील जी,
सादर नमस्कार.
मेरी ग़ज़ल पर आपकी टिप्पणी के लिए आपको धन्यवाद.
मैं आपका आभारी हूँ.
सादर,
डॉ. राकेश जोशी

Comment by Dr. Rakesh Joshi on January 5, 2016 at 8:45pm

आदरणीय शेख शहज़ाद जी,
सादर नमस्कार.
मेरी ग़ज़ल पर आपकी टिप्पणी के लिए आपको धन्यवाद.
मैं आपका आभारी हूँ.
सादर,
डॉ. राकेश जोशी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service