ज़िन्दगी कार के स्टिअरिंग से बोली - "भाई, तुम भी ग़ज़ब करते हो ! पल भर में इंसान के सफ़र को नया रुख़ दे देते हो , इस लोक से उस लोक पहुंचा देते हो !"
यह सुनकर मौत बोली - "इसमें उसका क्या क्या कसूर? इंसान की बुद्धि को 'स्टिअर' तो मैं करती हूँ! मनचाही दिशा में मोड़ देती हूँ इंसानी बुद्धि को अपनी 'स्टिअरिंग' से! जब अपने पर आती हूँ न, इंसान के सारे ज्ञान और अनुभव का घमंड चूर करके पल भर में इंसान पर 'बुद्धि' या 'मति' वाले सारे मुहावरे और लोकोक्तियां लागू कर देती हूँ! चाहे वह शादी में शामिल होने जा रहा हो या उठावनी में! पिकनिक पर जा रहा हो या पर्यटन पर!"
यह सुनकर ज़िन्दगी मौत से बोली - "सही कहा तुमने, लेकिन तुम्हें नहीं मालूम कि इस काम में तुम हर बार क्यों सफल हो जाती हो?"
"मतलब क्या है तुम्हारा? क्या कहना चाहती हो ?" - मौत ने ज़िन्दगी के चारों ओर चक्कर लगाते हुए इतरा कर कहा ।
"पुरुषों के सामने महिलाओं की अनचाही चुप्पी ! सफ़र में कोई महिला नहीं चाहती कि गंतव्य तक पहुंचने के लिए ज़ल्दबाज़ी करके दुर्घटना को न्यौता दिया जाए । तेज़ स्पीड, झूठी शान, और पहले पहुंचने का उतावलापन पुरुषों में ही होता है! हमसफ़र औरतों की मर्द सुनते ही कहाँ हैं, कार में सफ़र की बात हो, या ज़िन्दगी के सफ़र की बात हो!" - ये कहकर खोये हुओं का याद करके ज़िन्दगी सिसकने लगी ।
(मौलिक व अप्रकाशित)
[कार/वाहन दुर्घटनाओं में जीवन खोने वालों के प्रति विनम्र श्रद्धांजलि स्वरूप]
Comment
हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी जी !बहुत गूढ बात कह दी आपने इस लघुकथा के माध्यम से!ज़िंदगी और मौत का फ़लसफ़ा, बेहद बारीक़ी से वर्णन किया है!पुनः बधाई!
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