हर मेंढक अपनी पसंद का कुँआँ खोजता है
मिल जाने पर उसे ही दुनिया समझने लगता है
मेढक मादा को आकर्षित करने के लिए
जोर जोर से टर्राता है
पर यह पूरा सच नहीं है
वो जोर जोर से टर्राकर
बाकी मेंढकों को अपनी ताकत का अहसास भी दिलाता है
और बाकी मेंढकों तक ये संदेश पहुँचाता है
कि उसके कुँएँ में उसकी अधीनता स्वीकार करने वाले मेंढक ही आ सकते हैं
गिरते हुए जलस्तर के कारण
कुँओं का अस्तित्व संकट में है
और संकट में है कुँएँ के मेंढकों का भविष्य
इसलिए वो जोर शोर से टर्रा रहे हैं
मैं अक्सर यह सोचकर काँप जाता हूँ
कि यदि कुँएँ के इन मेंढकों को
ब्रह्मांड की विशालता
और अपने कुँएँ की क्षुद्रता का अहसास हो गया
तो वो सबके सब सामूहिक आत्महत्या कर लेंगे
जो वाद
प्रतिवाद नहीं सह पाता
मवाद बन जाता है
समय इंतज़ार कर रहा है
घाव के फूट कर बहने का
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
शुक्रिया आदरणीय गिरिराज जी
शुक्रिया आदरणीया ममता जी
शुक्रिया आदरणीय रवि जी
आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , संकेतों मे आपने आज की स्थिति का अच्छा अयान किया है , बधाई आपको ।
आदरणीय धर्मेन्द्र जी अतुकांत में सीधी और सच्ची बात कह दी आपने बधाई स्वीकार करें
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