For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नाम लिख मेरा हथेली पर, हुई गुमनाम तू (ग़ज़ल)

बह्र : २१२२ २१२२ २१२२ २१२

 

जो मुझे अच्छा लगे करने दे बस वो काम तू

ज़िन्दगी सुन, ज़िन्दगी भर रख मुझे गुमनाम तू

 

जीन मेरे खोजते थे सिर्फ़ तेरे जीन को

सुन हज़ारों वर्ष की भटकन का है विश्राम तू

 

तुझसे पहले कुछ नहीं था कुछ न होगा तेरे बाद

सृष्टि का आगाज़ तू है और है अंजाम तू

 

डूबता मैं रोज़ तुझमें रोज़ पाता कुछ नया

मैं ख़यालों का शराबी और मेरा जाम तू

 

क्या करूँ, कैसे उतारूँ, जान तेरा कर्ज़ मैं

नाम लिख मेरा हथेली पर, हुई गुमनाम तू

 ------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 712

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 6, 2016 at 7:59pm

आदरणीय समर साहब आप बिल्कुल सही कह रहे हैं, यहाँ ज़ाम बिल्कुल दुरुस्त होगा। तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ इस्लाह के लिए।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 6, 2016 at 7:58pm

शुक्रिया सतविंदर जी

Comment by Samar kabeer on January 6, 2016 at 11:28am
"मैं ख़्यालों का शराबी और है ख़य्याम तू"इस शैर के भाव से प्रतीत होता है कि "ख़य्याम"को आप साक़ी समझ रहे हैं,जबकि वो मात्र एक शायर है,मैं ख्यालों का शराबी और मेरा जाम तू"
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on January 6, 2016 at 11:22am
बहुत ख़ूब!
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 5, 2016 at 6:05pm

शुक्रिया आदरणीय गुमनाम साहब

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 5, 2016 at 6:05pm

आदरणीय पंकज जी, बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 5, 2016 at 6:04pm

आदरणीय समर साहब, देर से जवाब देने के लिए क्षमा चाहता हूँ। यहाँ खैय्याम ‘उमर खैय्याम’ साहब के लिए प्रयुक्त किया गया है। ग़ज़ल पसंद करने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by gumnaam pithoragarhi on January 4, 2016 at 7:26pm

अच्छा है .....................

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 3, 2016 at 9:03am
आदरणीय धर्मेन्द्र जी बेहद ख़ूबसूरत ग़ज़ल हुई है, बधाई।
Comment by Samar kabeer on January 2, 2016 at 2:02pm
जनाब धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी आदाब,बहुत ही शानदार ग़ज़ल हुई है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाये |
"ख़य्याम"को आपने किस अर्थ में लिया है ?

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Sunday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service