बह्र : २२ २२ २२ २२ २२ २२ २
अच्छी बात वही जिसको मर्जी अपनाती है
बात वही गंदी जो सब पर थोपी जाती है
मज़लूमों का ख़ून गिरा है, दाग न जाते हैं
चद्दर यूँ तो मुई सियासत रोज़ धुलाती है
रोने चिल्लाने की सब आवाज़ें दब जाएँ
राजनीति इसलिए प्रगति का ढोल बजाती है
फंदे से लटके तो राजा कहता है बुजदिल
हक माँगे तो, जनता बद’अमली फैलाती है
सारा ज्ञान मिलाकर भी इक शे’र नहीं होता
सुन, भेजे से नहीं, शाइरी दिल से आती है
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय बड़े भाई धर्मेन्द्र जी, बहुत बेहतरीन ग़ज़ल कही है. दाद ओ मुबारकबाद हाज़िर है.
बहुत खूब आ० भाई धमेन्द्र जी ..हार्दिक बधाई l
हार्दिक बधाई आदरणीय धर्मेंद्र कुमार सिंह जी!बहुत शानदार गज़ल!आज के सियासती माहौल पर बेहतरीन कटाक्ष!पुनः बधाई!
इतने नांदां तो नहीं हम भी कि तेरी बात ना समझे,
कुछ बातें इल्म से नहीं, अनुभव से समझी जाती हैं!
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