For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

काम सारे

ख़त्म करके

रुक गई बहती नदी

ओढ़ कर

कुहरे की चादर

देर तक सोती रही

 

सूर्य बाबा

उठ सवेरे

हाथ मुँह धो आ गये

जो दिखा उनको

उसी से

चाय माँगे जा रहे

 

धूप कमरे में घुसी

तो हड़बड़ाकर

उठ गई

 

गर्म होते

सूर्य बाबा ने

कहा कुछ धूप से

धूप तो

सब जानती थी

गुदगुदा आई उसे

 

उठ गई

झटपट नहाकर

वो रसोई में घुसी

 

चाय पीकर

सूर्य बाबा ने कहा

जीती रहो

खाईयाँ

दो पर्वतों के बीच की

सीती रहो

 

मुस्कुरा चंचल नदी

सबको जगाने चल पड़ी

Views: 730

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 14, 2016 at 11:05am

इस मुखर अनुमोदन के लिए तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ आदरणीय सौरभ जी


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 6, 2016 at 1:44am

इस नवगीत का आत्मविश्वास आदरणीय धर्मेन्द्रजी, मुग्ध कर रहा है ! मन वस्तुतः सुखानुभूति में डोल रहा है ! 

काम सारे / ख़त्म करके / रुक गई बहती नदी / ओढ़ कर / कुहरे की चादर / देर तक सोती रही /..

क्या बात है, आदरणीय ! क्या बात है !

प्रकृति का मानवीकरण यों तो आंग्ल साहित्य के रोमाण्टिसिज्म वाले दौर की याद दिलाता है. ये कवायद भी तभी की मानी जाती है. लेकिन हम मेघदूत को कैसे बिसर सकते हैं ? लेकिन यह अपने पद्य-इतिहास में आया आंग्ल साहित्य से ही माना गया है. फिर, बिना तनिक बदलाव के छायावादोत्तर काल तक बना रहा. लेकिन, सही कहिये तो यह गया कहीं नहीं है. बल्कि आज भी बदस्तूर बना हुआ है. तनिक रूप बदल के ! आपका प्रस्तुत नवगीत मेरे कहे की हामी भरता है. तार्किक रूप से समृद्ध और शैल्पिक ढंग से सुगढ़ प्रतीत हो रहे इस नवगीत केलिए हार्दिक बधाई. 

शुभेच्छाएँ 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 5, 2016 at 12:47pm
बहुत बहुत शुक्रिया जनाब उस्मानी साहब
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on February 5, 2016 at 12:23pm
सुबह/कुहरे की चादर/नदी/धूप/स्नान और सूर्य बाबा की बढ़िया "चाय"... सब ने कई अर्थ सम्प्रेषित कर शब्दों की लय को तालबद्ध कर जो समां बाँधा है, उसे केवल महसूस किया जा सकता है। तहे दिल बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी।
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 5, 2016 at 10:28am
शुक्रिया आदरणीया कान्ता जी
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 5, 2016 at 10:26am
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सतविंदर जी
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 5, 2016 at 10:26am
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय मिथिलेश जी
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 5, 2016 at 10:25am
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय तेज वीर जी
Comment by kanta roy on February 4, 2016 at 11:45pm

वाह ! बेहद खूबसूरत रचना की प्रस्तुति हुई है आदरणीय धर्मेन्द्र कुमार जी।  बधाई प्रेषित है। 

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on February 4, 2016 at 5:34pm
बेहतरीन भावाभिव्यक्ति हुई है आदरणीय धर्मेन्द्र जी।हार्दिक बधाई।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

भादों की बारिश

भादों की बारिश(लघु कविता)***************लाँघ कर पर्वतमालाएं पार करसागर की सर्पीली लहरेंमैदानों में…See More
7 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान ।मुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।। छोटी-छोटी बात पर, होने लगे…See More
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय चेतन प्रकाश भाई ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक …"
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सुशील भाई  गज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिए आपका आभार "
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
11 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"विगत दो माह से डबलिन में हूं जहां समय साढ़े चार घंटा पीछे है। अन्यत्र व्यस्तताओं के कारण अभी अभी…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"प्रयास  अच्छा रहा, और बेहतर हो सकता था, ऐसा आदरणीय श्री तिलक  राज कपूर साहब  बता ही…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छा  प्रयास रहा आप का किन्तु कपूर साहब के विस्तृत इस्लाह के बाद  कुछ  कहने योग्य…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"सराहनीय प्रयास रहा आपका, मुझे ग़ज़ल अच्छी लगी, स्वाभाविक है, कपूर साहब की इस्लाह के बाद  और…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आपका धन्यवाद,  आदरणीय भाई लक्ष्मण धानी मुसाफिर साहब  !"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"साधुवाद,  आपको सु श्री रिचा यादव जी !"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"धन्यवाद,  आज़ाद तमाम भाई ग़ज़ल को समय देने हेतु !"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service