२१२२ १२१२ २२
भूख हड़ताल बारहा रखिये
हुक्मरानों पे दबदबा रखिये
बह रही है हवा सियासत की
किस तरफ बस यही पता रखिये
शह्र में चैन हो न हो ठंडक
गर्म मुद्दा कोई नया रखिये
सूखने पर कोई न पूछेगा
जख्म दिल का सदा हरा रखिये
लोग मरते रहें भले पीकर
हर गली एक मयकदा रखिये
क्या करेगा धुआँ धुआँ ही तो है
आप बेख़ौफ़ सिलसिला रखिये
इश्क के साथ दिल्लगी करना
नाम फिर उसका बेवफ़ा रखिये
आज बाजार रिश्वतों का है
जेब में आप कायदा रखिये
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आ० गिरिराज जी,आपको ये शेर पसंद आये मेरा लिखना सफल हुआ आपका तहे दिल से आभार |
प्रिय प्रतिभा जी, आपका हार्दिक आभार स्नेह बनाए रखिये .
आ० लक्ष्मण धामी भैया ,आपका दिल से बहुत- बहुत शुक्रिया .
मिथिलेश भैया हमेशा की तरह आपकी प्रतिक्रिया से उत्साह वर्धन हुआ तहे दिल से शुक्रिया लिखना सफल हुआ .आज कल मुंबई में हूँ नेट पर कम आ पा रही हूँ इस लिए मुशायरे में भी नहीं शरीक हुई इस बार .बहुत मिस्स किया
आ० समर भाई जी ,आपकी प्रतिक्रिया से होंसला दुगुना हो गया मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से बहुत- बहुत आभार आपका .
आ० नादिर खान जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई सुखन नवाजी का बहुत- बहुत शुक्रिया .
आ० तेजवीर सिंह जी ,होंसलाफ्जाई के लिए तहे दिल से शुक्रिया .
आदरनीया राजेश जी , बेहतरीन गज़ल कही है , क्या बात है , शे र नम्बर एक से चार बहुत पसंद आये । आपको हार्दिक बधाइयाँ ।
सूखने पर कोई न पूछेगा
जख्म दिल का सदा हरा रखिये....वाह , ... सुन्दर ग़ज़ल पर बधाई स्वीकार करें आदरणीया राजेश कुमारी जी
सूखने पर कोई न पूछेगा
जख्म दिल का सदा हरा रखिये
खूब कहा राजेश दी ...इस सुन्दर ग़ज़ल के लिए ढेरों बधाइयां l
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