बेवजह बात जिरह करके बढाता क्यूँ है एक मासूम पे इल्जाम लगाता क्यूँ है
खोल देती हैं सभी राज पनीली आँखें फिर जमाने से बशर दर्द छुपाता क्यूँ है
हो गया आज क्यूँ इंसा की तरह आईना , सच छुपाकर ये सदा झूठ दिखाता क्यूँ हैं
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Comment
आ० लक्ष्मण धामी भैय्या आपको ग़ज़ल पसंद आई बहुत- बहुत आभार आपका.
आ० तेजवीर सिंह जी ,आपकी सराहना पाकर मेरा लेखन कर्म सार्थक हो गया |दिल से बहुत आभारी हूँ सादर .
आ० समर भाई जी ,पोस्ट पर बहुत दिनों बाद आना हुआ एक महीने से बहुत ही ज्यादा व्यस्त थी |प्रत्युत्तर में विलम्ब के लिए क्षमा चाहती हूँ |आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ |आपकी बात का अगली बार पूर्ण ध्यान रखूंगी ग़ज़ल के अरकान जरूर लिखा करूंगी |आपका दिल से बहुत- बहुत आभार.
आदरणीया राजेश दीदी, ग़ज़ल की बह्र या वज़्न ....?. सादर
आ० राजेश दी इस लाजवाब ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई l
हार्दिक बधाई आदरणीया राजेश कुमारी जी!!बेहतरीन गज़ल!एक एक शेर बहुत लाज़वाब है!पुनः बधाई!
खोल देती हैं सभी राज पनीली आँखें फिर जमाने से बशर दर्द छुपाता क्यूँ है
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