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फिर जमाने से बशर दर्द छुपाता क्यूँ है (फिलब्दीह ग़ज़ल 'राज')

बेवजह बात जिरह करके बढाता क्यूँ है                                                                                                                             एक मासूम पे इल्जाम लगाता क्यूँ है

 

खोल देती हैं सभी राज पनीली आँखें                                                                                                                               फिर जमाने से बशर दर्द छुपाता क्यूँ है

 

हो गया आज क्यूँ इंसा की तरह आईना ,

सच छुपाकर ये सदा झूठ दिखाता क्यूँ हैं

 

 

भर रहा था जो अभी वक़्त से धीरे धीरे

,तू उसी जख्म पे तेज़ाब लगाता क्यूँ है

 

 

छेड़ कुदरत से करेंगे तो बुरा होगा हश्र,

ऐसे आफ़ात बशर पास बुलाता क्यूँ है .

 

 

कल चुभेंगे वही पैरों में तेरे अपनों के,                                                                                        

राह में ख़ार किसी के तू बिछाता क्यूँ है

 

 

छीन लेती है कज़ा रूह को जब भी चाहे,

फिर खुदा जिस्म से उसको यूँ मिलाता क्यूँ है.

--------------मौलिक एवं अप्रकाशित 

 

 

 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 1, 2016 at 8:25pm

आ० लक्ष्मण धामी भैय्या आपको ग़ज़ल पसंद आई बहुत- बहुत आभार आपका. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 1, 2016 at 8:24pm

आ० तेजवीर सिंह जी ,आपकी सराहना पाकर मेरा लेखन कर्म सार्थक हो गया |दिल से बहुत आभारी हूँ सादर .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 1, 2016 at 8:23pm

आ० समर भाई जी ,पोस्ट पर बहुत दिनों बाद आना हुआ एक महीने से बहुत ही ज्यादा व्यस्त थी |प्रत्युत्तर में विलम्ब के लिए क्षमा चाहती हूँ |आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ |आपकी बात का अगली बार पूर्ण ध्यान रखूंगी ग़ज़ल के अरकान जरूर लिखा करूंगी |आपका दिल से बहुत- बहुत आभार. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 27, 2016 at 11:46pm

आदरणीया राजेश दीदी, ग़ज़ल की बह्र या वज़्न ....?. सादर 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 26, 2016 at 11:01am

आ० राजेश दी इस लाजवाब ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई l

Comment by TEJ VEER SINGH on January 25, 2016 at 6:14pm

हार्दिक बधाई आदरणीया राजेश कुमारी जी!!बेहतरीन गज़ल!एक एक शेर बहुत लाज़वाब है!पुनः बधाई!

     खोल देती हैं सभी राज पनीली आँखें                                                                                                                               फिर जमाने से बशर दर्द छुपाता क्यूँ है

Comment by Samar kabeer on January 25, 2016 at 5:36pm
बहना राजेश कुमारी जी आदाब,फ़िलबदीह ग़ज़ल में आपको कमाल हासिल है,ये पहले भी कह चुका हूँ,ये ग़ज़ल भी शानदार रही,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं !
देख रहा हूँ कि आजकल मंच पर ग़ज़ल के अरकान कुछ सदस्य ही लिखते हैं,जूनियर तो जूनियर हैं,सीनियर्स को इसका ख़ास ख़याल रखना चाहिये,सही है न ?

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