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तेरा सिर्फ़ है आना बाक़ी--(ग़ज़ल)-- मिथिलेश वामनकर

2122—1122—1122—22

 

दिल तो है पास, तेरा सिर्फ़ है आना बाक़ी

और ये बात जमाने से छुपाना बाक़ी

 

ज़िंदगी इतनी-सी मुहलत की गुज़ारिश सुन लो

आखिरी क़िस्त है साँसों की चुकाना बाक़ी

 

फिर सियासत ने सभी दांव बराबर खेले

अब तो मज़हब की वही आग लगाना बाक़ी

 

फिर नई पौध को मारा है इसी जुमले ने-

“अब न वो लोग, न वैसा है ज़माना बाक़ी”

 

बस सियासत से है लबरेज अदब की दुनिया

अब न शायर का कोई ठौर ठिकाना बाक़ी

 

शहर पूरा ही सजाया है, ज़रा देर मगर

सिर्फ़ फुटपाथ से बिस्तर का हटाना बाक़ी

 

आज ख़्वाबों के सभी पंख कुतर देता पर

इस परिंदे को जरा सा है उड़ाना बाक़ी

 

दास्ताँ दर्द की हमने तो सुना दी लेकिन

अपनी आँखों से वही दर्द बताना बाक़ी

 

दे चुका हूँ मैं नसीहत का पिटारा लेकिन

सिर्फ़ बेटे को जरा आँख दिखाना बाक़ी

 

 

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(मौलिक व अप्रकाशित) © मिथिलेश वामनकर
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Comment by मिथिलेश वामनकर on January 7, 2017 at 11:38pm

आदरणीय गोपाल सर, आपकी सराहना आश्वस्तकारी है. हार्दिक धन्यवाद. आभार. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 7, 2017 at 11:38pm

आदरणीय सलीम जी, सराहना हेतु हार्दिक आभार. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 7, 2017 at 11:36pm

आदरणीय गिरिराज सर, मार्गदर्शन एवं सराहना हेतु हार्दिक आभार. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 7, 2017 at 11:32pm

आदरणीय समर कबीर जी, आपके मार्गदर्शन अनुसार प्रयास करता हूँ सादर. सराहना हेतु आभार. सादर....


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 7, 2017 at 11:29pm

आदरणीय तेजवीर सिंह जी,

आपको ग़ज़ल पसंद आई, जाकर आश्वस्त हुआ.

इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद. सादर.

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on March 7, 2016 at 11:28am

आदरणीय मिथलेश जी ,शानदार ग़ज़ल...इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई..

ब्लॉग का पेज भी आप ने बहुत सुन्दर सजाया है बहुत अच्छा लगा
भ्रमर ५

Comment by amita tiwari on March 7, 2016 at 1:57am

इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई  स्वीकारें. सादर

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 29, 2016 at 3:52pm

बेहद खूबसूरत 

Comment by Ram Ashery on February 9, 2016 at 3:22pm

अति उत्तम रचना सहृदय बधाई स्वीकार हो 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 5, 2016 at 10:24am
बहुत अच्छे अश’आर हुए हैं आदरणीय मिथिलेश जी, दाद कुबूल करें

कृपया ध्यान दे...

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"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
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