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गज़ल - चोरों के हाथों में मत रखवाली दो ( गिरिराज भंडारी )

22  22  22  22  22  2

हाथों को पत्थर , आँखों को लाली दो

मुँह खोलो, चीखो चिल्लाओ , गाली दो

 

ऊँचे सुर में आल्हा गाओ , सरहद पर

वीरों को मंचों से मत कव्वाली दो

 

जिस बस्ती मे रहा हमेशा अँधियारा 

उस बस्ती को दिन में भी दीवाली दो

 

तुम पगड़ी पहनो ले जाओ केसरिया

लाओ सर पर मेरे टोपी जालीदो

 

छद्म वेश में राहू केतू आये फिर

अमृत नहीं उन्हे ज़हर की प्याली दो

 

कहीं मूर्खता की सीमा तो बाँधोगे

चोरों के हाथों में मत रखवाली दो

 

तुम ज़हनों को माजी तक ले कर जाना

आश्वासन हैं झूठे मत तुम ताली दो 

 

सूरज है गुस्से में, धरती बंजर है

सोच-समझ को तुम थोड़ी हरियाली दो

**************************
पुछल्ला  -
जिस महफिल की सभी सुराही खाली है
उस महफिल को साक़ी तो मतवाली दो

************************

 मौलिकएवँअप्रकाशित

Views: 706

Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 17, 2016 at 7:42am

आदरणीय सौरभ भाई , आपने गज़ल पर शिर्कत की तो ग़ज़ल कहना सफल हो गया , सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 17, 2016 at 7:41am

आदरणीय आशुतोष भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 17, 2016 at 7:41am

आदरणीय रवि भाई , हौसला अफज़ाई का दिली शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 17, 2016 at 7:40am

आदरनीय श्याम नाराइन भाई , आपका दिली शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 17, 2016 at 7:40am

आदरणीय मिथिलेश भाई , सराहना के लिये आपका आभारी हूँ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 17, 2016 at 7:39am

आदरणीय तेज़ वीर भाई , हौसला अफज़ाई का बेहद शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 17, 2016 at 7:39am

आदरनीय समर भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपक दिली शुक्रिया ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 10, 2016 at 12:00am

सधी सुगढ़ सहज ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाइयाँ, आदरणीय गिरिराज भाईजी !

Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 29, 2016 at 2:29pm

आदरणीय गिरिराज भाईसाब बहुत दिनों बाद आपकी रचना पढ़ पा रहा हूँ ..हमेशा की तरह लाजवाब ग़ज़ल ..इस ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई सादर

Comment by Ravi Shukla on January 29, 2016 at 10:17am

आदरणीय गिरिराज जी बहुत बढि़या ग़ज़ल कही है आपने दिली दाद कुबूल करें

कृपया ध्यान दे...

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