For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - जब किसी लब पे कोई दुआ ही नहीं -- गिरिराज भंडारी

212   212   212   212 

जीत उसको मिली जो लड़ा ही नहीं

कौन सच में लड़ा ये पता ही नही

 

साजिशों से अँधेरा किया इस क़दर  

कब्र उसकी बनी जो मरा ही नहीं

 

झूठ के पाँव पर मुद्दआ था खड़ा

पर्त प्याज़ी हठी, कुछ मिला ही नहीं

 

यूँ बदी अपना खेमा बदलती रही

अब किसी के लिये कुछ बुरा ही नहीं

 

इन ख़ुदाओं को देखा तो ऐसा लगा

इस जहाँ में कहीं अब ख़ुदा ही नहीं

 

छोड़ दी जब गली, नक्श भी मिट गये

चाहतें क्या रहें ? जब गिला ही नहीं 

 

क्या कुबूल अब ख़ुदा भी करे सोचिये

जब किसी लब पे कोई दुआ ही नहीं

 

जिसने समझा मुझे उसने देखा मुझे  

मुझको खोजो नहीं, मै छिपा ही नहीं

************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 1016

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on March 20, 2016 at 12:56pm
बहुत खूब जनाब (मेरे ख़याल से साजिशों ने अँधेरा )ज्यादा माकूल लगता है।
Comment by narendrasinh chauhan on March 8, 2016 at 3:51pm

अच्छी रचना हेतु बधाई आदरणीय


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 6, 2016 at 11:42pm

आदरणीय गिरिराज सर, शानदार ग़ज़ल कही है आपने. शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं.

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 3, 2016 at 3:41pm

वाहह वाहह आदरणीय बहुत ही सुंदर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 1, 2016 at 10:07pm

आदरणीय  प्रधान संपादक महोदय , मेरी इस गज़ल को फीचर करने के लिये आपका ह्र्दय से आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 1, 2016 at 10:04pm

आदरनीय जयनित भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।

Comment by जयनित कुमार मेहता on February 28, 2016 at 9:35am

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, खूबसूरत ग़ज़ल कही आपने। मतला तो लाजवाब हुआ है।

Comment by Rahul Dangi Panchal on February 28, 2016 at 6:59am
अच्छी रचना हेतु बधाई आदरणीय

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 25, 2016 at 10:58pm

आदरणीय गुमनाम भाई , आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 25, 2016 at 10:58pm

आदरणीय सुशील सरना भाई , आपकी मुखर सराहना के लिये दिल से शुक्रिया आपका ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
22 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
22 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday
Sushil Sarna posted blog posts
Nov 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service