आदरनीय वीनस भाई जी की एक गज़ल की ज़मीन पर कहने की एक कोशिश
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22 22 22 22 22 2
दुश्मन को महमान बनाये बैठे हैं
गुलशन को वीरान बनाये बैठे हैं
सिर्फ जीतने की ख़्वाहिश है जिनकी , वो
गद्दारों को जान बनाये बैठे हैं
इंसानी कौमें हैं खुद पे शर्मिन्दा
ऐसों को इंसान बनाये बैठे हैं
जिस्म काटने की चाहत में भारत का
दिल में पाकिस्तान बनाये बैठे हैं
उधर मिसाइल , बम की बातें सुन के भी
शांति दूत को शान बनाये बैठे हैं
भगत सिंग का देश प्रेम सब भूल गये
हिरोइन को जान बनाये बैठे हैं
उस्तादों का हाथ रहा है सर पर , तो
हम जैसे दीवान बनाये बैठे हैं
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
उस्तादों का हाथ रहा है सर पर , तो
हम जैसे दीवान बनाये बैठे हैं-------------------आदरणीय अनुज ---क्या बात है !
लाजवाब ग़ज़ल हुई है भाई जी ....शानदार अशआर निकाले है आपने अपनी कमल से ...
सिर्फ जीतने की ख़्वाहिश है जिनकी , वो
गद्दारों को जान बनाये बैठे हैं
जिस्म काटने की चाहत में भारत का
दिल में पाकिस्तान बनाये बैठे हैं
दोनों ही बेहतरीन शेर वाह्ह्ह ...बधाई आपको बहुत बहुत
आदरनीय समर कबीर भाई , आप जानते हैं मै अरूजी नहीं हूँ , केवल गज़ल कह लेता हूँ । आप इस शेर की तक्तीअ कर लीजिये तो शायद बात समझ मे आये । इस मात्रिक बहर मे - 22 को 121 या 112 या 211 कर की छूट होती है -- एक मक्बूल शे र मै आदरणीय वीनस भाई जी की किताब ' ग़ज़ल की बाबत ' से पेज 165 मे दिये उदाहर्ण से ले रहा हूँ , आप चाहें तो फोटॉ खींच के डाल दूंगा ।
पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने हैं
जाने न जाने गुल ही न जाने बाग़ तो सारा जाने हैं -- शेर सात फेलुन और फा मे है , आप तक्तीअ कर के देखियेगा ।
आदरणीय श्याम नाराइन भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया ।
आदरणीय राम आश्रय भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ।
बेहद उम्दा ...बहुत बहुत बधाई आप को आदरणीय | सादर |
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