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मेरी माँ ने झूठ बोल के आंसू छिपा लिया

मेरी माँ ने झूठ बोल के आंसू छिपा लिया
भूखी रह भरे पेट का बहाना बना लिया...

.

सिर पे उठा के बोझा जब थक गई थी वो
इक घूंट पानी पीके अपना ग़म दबा लिया...

.

दिन सारा की थी मेहनत पर कुछ नहीं मिला
इस दर्द को ही अपना मुकद्दर बना लिया...

.

फटे हुए कपड़ों को सीं सींकर है पहनती
ग़मों को फिर आँखों में अपनी छिपा लिया...

.

कब से अकेली जी रही ख़ुद ही के वो सहारे
उसने था तन्हाई को अपना बना लिया...

.

पता था उसे आज भी आया नहीं बापू
तो डाकिया से फिर पुराना ख़त पढ़ा लिया...

.

‘आशू’ अगर इस माँ का अब इक आंसू निकल गया

तो मान लेना तुमने अपना सब गवां दिया...

.
!!अश्वनी कुमार !!
"मौलिक और अप्रकाशित"

Views: 563

Comment

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प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on January 28, 2016 at 2:36pm

भाई अश्विनी कुमार जी, श्री मिथिलेश वामनकर जी ने जो किया वह एक वरिष्ठ जागरुक सदस्य का कर्तव्य था, जिसकी मैं भूरि-भूरि प्रशंसा करता हूँI यह एक स्वस्थ परंपरा है, जिसका पालन हर ईमानदार लेखक और पाठक को करना चाहिए ताकि साहित्य चोरी पर अंकुश लगाया जा सकेI क्योंकि कल को कोई व्यक्ति आपकी रचना को आपने नाम से प्रकाशित करवाने का प्रयत्न करे तो ऐसी जागरूक और चौकन्नी निगाहें ही उसे पकड़ पाने में सक्षम होंगीI किन्तु उनके द्वारा उठाई गई आपत्ति पर अपना स्पष्टीकरण दिया तो बात शीशे की तरह साफ़ हो गईI लेकिन फिर भी पूर्व प्रकाशित रचना होने के कारण इसे हटाया जाएगाI आश्वस्त रहे, इस परिवार में जानबूझ कर किसी भी सम्मानित सदस्य की शान में कभी कोई गुस्ताखी नहीं की जातीI  बहरहाल, इस मँच पर बने रहना या इसे छोड़ना आपकी निजी पसंद पर निर्भर करता हैI

Comment by Ashwani Kumar on January 28, 2016 at 10:12am

आदरणीय योगराज जी, शायद आप मुझसे ज्यादा अनुभवी हैं और आपको ज्ञान भी मुझसे ज्यादा है. लेकिन शायद आप यह नहीं देख पाए कि समय अंतराल मेरा ही ब्लॉग है और अजमेरनामा.कॉम पर यह पोस्ट मेरे नाम से ही प्रकाशित हुई है. आप देख सकते हैं कि किस दिनांक में यह रचना किसके नाम से और सबसे पहले प्रकाशित हुई है. मैंने इस रचना की चोरी हेतु अपने फेसबुक पेज पर एक पोस्ट भी डाला था, क्योंकि यह रचना शायद काफी लोगों को पसंद आई है और शायद इसी कारण नए नए लोगों ने इसे अपने नाम से प्रकाशित कर लिया है. वह कॉपी राईट जैसी किसी चीज़ से शायद अवगत नहीं है और अगर अब भी आपको लगता है कि मेरी सदस्यता समाप्त होनी चाहिए तो आपको जरुरत नहीं है मैं खुद ही ऐसे किसी मंच से नहीं जुड़ना चाहता हूँ जो इस तरह की बातें करते हैं. मिथिलेश जी शायद अब तो आप जान ही गए होंगे... समय अंतराल मेरा ही ब्लॉग है और चोरी के कारण ही इस ब्लॉग से मैंने अपना ट्विटर और फेसबुक पेज भी जोड़ा हुआ है. 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on January 28, 2016 at 9:43am

श्री अश्विनी कुमार जी, इस रचना की मौलिकता के बारे में अगले 24 घंटे तक अपना पक्ष रखें, ऐसा न करने पर आपकी सदस्यता समाप्त की जा सकती है I


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 28, 2016 at 12:47am

 आदरणीय अश्विन जी, यह रचना पूर्व प्रकाशित रचना है जिसे कई लोगों ने अपने नाम से पोस्ट किया है. आपसे विनम्र निवेदन है कि इस मंच पर केवल मौलिक व अप्रकाशित रचना ही स्वीकार्य है अतः आशा है आप दुबारा ऐसी गलती नहीं करेंगे. सुलभ सन्दर्भ हेतु कुछ लिंक प्रस्तुत है-

http://samay-antraal.blogspot.in/2013/12/blog-post_31.html

http://meriahesas.blogspot.in/2014/03/blog-post_28.html

http://shalusinghlic.blogspot.in/2014/04/blog-post_25.html?view=mag...

http://lavtiwari.blogspot.in/2015/04/meri-maa-ne-jhoot-bol-ke.html

http://ajmernama.com/guest-writer/105238/

https://plus.google.com/+ritikaservi/posts/VpYwsRF1sSV

Comment by TEJ VEER SINGH on January 27, 2016 at 7:34pm

हार्दिक बधाई अश्विन कुमार जी!बहुत सुंदर प्रस्तुति!

आशू’ अगर इस माँ का अब इक आंसू निकल गया

तो मान लेना तुमने अपना सब गवां दिया...

.

कृपया ध्यान दे...

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