ग़ज़ल ( क्या ज़रूरत थी मुस्कराने की )
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फ़ितरते बर्क़ है जलाने की /
ख़ैर क्या मांगें आशियाने की /
जाँ अगर लेनी थी बता देते
क्या ज़रूरत थी मुस्कराने की /
उनकी आदत है जुल पे जुल देना
और अपनी फ़रेब खाने की /
छिन गई नींद लुट गया है सुकूं
ये सज़ा पायी दिल लगाने की /
पास जाके भी देखते कैसे
उनकी आदत है मुंह छुपाने की/
घर किराये के ख़ूब मिलते हैं
क्या ज़रूरत मकाँ बनाने की /
इश्क़ तस्दीक़ करने से पहले
आदतें डालिये निभाने की /
(मौलिक व अप्रकाशित )
Comment
जनाब मोहन बेगोवाल साहिब , हौसला अफ़ज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया
सुंदर ग़जल -आदरनीय तस्दीक जी बधाई हो
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