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कथा-गीत: मैं बूढा बरगद हूँ यारों... --संजीव 'सलिल'

कथा-गीत:
मैं बूढा बरगद हूँ यारों...
संजीव 'सलिल'
*
MFT01124.JPG

*
मैं बूढा बरगद हूँ यारों...

है याद कभी मैं अंकुर था.
दो पल्लव लिए लजाता था.
ऊँचे वृक्षों को देख-देख-
मैं खुद पर ही शर्माता था.

धीरे-धीरे मैं बड़ा हुआ.
शाखें फैलीं, पंछी आये.
कुछ जल्दी छोड़ गए मुझको-
कुछ बना घोंसला रह पाये.

मेरे कोटर में साँप एक
आ बसा हुआ मैं बहुत दुखी.
चिड़ियों के अंडे खाता था-
ले गया सपेरा, किया सुखी.

वानर आ करते कूद-फांद.
झकझोर डालियाँ मस्ताते.
बच्चे आकर झूला झूलें-
सावन में कजरी थे गाते.

रातों को लगती पंचायत.
उसमें आते थे बड़े-बड़े.
लेकिन वे मन के छोटे थे-
झगड़े ही करते सदा खड़े.

कोमल कंठी ललनाएँ आ
बन्ना-बन्नी गाया करतीं.
मागरमाटी पर कर प्रणाम-
माटी लेकर जाया करतीं.

मैं सबको देता आशीषें.
सबको दुलराया करता था.
सबके सुख-दुःख का साथी था-
सबके सँग जीता-मरता था.

है काल बली, सब बदल गया.
कुछ गाँव छोड़कर शहर गए.
कुछ राजनीति में डूब गए-
घोलते फिजां में ज़हर गए.

जंगल काटे, पर्वत खोदे.
सब ताल-तलैयाँ पूर दिए.
मेरे भी दुर्दिन आये हैं-
मानव मस्ती में चूर हुए.

अब टूट-गिर रहीं शाखाएँ.
गर्मी, जाड़ा, बरसातें भी.
जाने क्यों खुशी नहीं देते?
नव मौसम आते-जाते भी.

बीती यादों के साथ-साथ.
अब भी हँसकर जी लेता हूँ.
हर राही को छाया देता-
गुपचुप आँसू पी लेता हूँ.

भूले रस्ता तो रखो याद
मैं इसकी सरहद हूँ प्यारों.
दम-ख़म अब भी कुछ बाकी है-
मैं बूढा बरगद हूँ यारों..
***********************

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 20, 2010 at 12:01pm
भूले रस्ता तो रखो याद
मैं इसकी सरहद हूँ प्यारों.
दम-ख़म अब भी कुछ बाकी है-
मैं बूढा बरगद हूँ यारों..

आचार्य जी आज धीरे धीरे मूल्याविहीन हो रहे समाज मे बूढ़े बरगद की बहुत ही आवश्यकता है,बहुत ही अर्थपूर्ण और सार्थक अभिव्यक्ति है, सादर आभार ,

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on June 18, 2010 at 6:33pm
आचार्य जी के चरणों में सादर प्रणाम

बरगद की यह कथा आज समाज में बुजुर्गों की स्थिति की ओर भी इंगित करती है. और अंतिम पंक्तियाँ यह एहसास भी कराती है कि यदि जीवन पथ में कभी भटकाव कि स्थिति आये तो अपने उसी बुजुर्ग बरगद कि शरण में जाओ. लक्ष्य सम्मुख ही प्रतीत होगा...........

सादर........
Comment by Admin on June 17, 2010 at 10:38pm
आचार्य जी, एडमिन की पहुच केवल किसी भी पोस्ट के शीर्षक तक ही है, उसमे ही संपादन हो सकता है, बाकी मुख्य रचना को छेड़ने का अधिकार ब्लॉग पोस्ट कर्ता के अलावा एडमिन सहित किसी को भी नहीं दिया गया है हा प्रबंधन द्वारा पोस्ट को हटाया जा सकता है,
बरगद के पेड़ को आप द्वारा यहाँ से download कर Edit Post द्वारा डाला जा सकता है,
Comment by sanjiv verma 'salil' on June 17, 2010 at 7:33pm
बहुत सुन्दर बरगद. संभव हो तो गीत के साथ संलग्न कर दें. सराहना हेतु आभार.
Comment by Admin on June 17, 2010 at 6:58pm

बहुत ही सुंदर रचना है आचार्य जी , बार बार पढ़ने को जी चाहता है,
Comment by Pallav Pancholi on June 17, 2010 at 12:23am
संजीव जी...... बहुत खूब......... आपको सदर नमन इंटनी सुंदर रचना हेतु

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