वह समय था
जब हम जाते थे माँ के साथ
नीरव-विजन मंदिर में
देव-विग्रह के समक्ष
सांध्य-दीप जलाने
क्रम से आती थी गाँव की
अन्य महिलाएं
मिलता था तोष
एक अनिवर्चनीय सुख
जबकि नहीं देते थे भगवान्
कुछ भी प्रत्यक्षतः
सिर्फ रहते थे मौन
आज वही विग्रह
करते है अवगाहन रात भर
ट्यूब–लाइट की दूधिया रोशनी मे
नहीं आती अब वहां ग्राम की बधूटियां
पर उपचार, देव-कार्य करते हैं
एक उद्विग्न कम उम्र के पुजारी
लोग कहते हैं अब कार्य वे जघन्य जो
तब होते थे
दीप बुझने के बाद
आधी रात के करीब
चोरी से रात के अँधेरे में
उससे भी घृणित कृत्य
अब होते है शायद
हैलोजन की रोशनी में
ठीक देव –विग्रह की नाक के नीचे
आँखों के सामने
उत्कट विद्रूपता से
और भगवान् उतने ही निर्विकार हैं
जैसे कि पहले थे
कुछ भी नही करते अब भी प्रत्यक्षतः
सिर्फ रहते है मौन
उन्हें भी प्रतीक्षा है अति के चरम होने की
बजते हैं मंदिर में नित्य
हनुमान चालीसा, रामचरित मानस,
गीता के टेप
श्रृद्धालु सुनते हैं, उन्हें विश्वास है
‘तदात्मानं सृजाम्यहम्’
कृष्ण ने कहा था
(मौलिक व् अप्रकाशित )
Comment
बहुत सुन्दर ... सादर बधाई स्वीकारें आदरणीय |
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online