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वह समय था

जब हम जाते थे माँ के साथ

नीरव-विजन मंदिर में

देव-विग्रह के समक्ष

सांध्य-दीप जलाने

क्रम से आती थी गाँव की

अन्य महिलाएं  

मिलता था तोष

एक अनिवर्चनीय सुख

जबकि नहीं देते थे भगवान्

कुछ भी प्रत्यक्षतः

सिर्फ रहते थे मौन

आज वही विग्रह

करते है अवगाहन रात भर

ट्यूब–लाइट की दूधिया रोशनी मे

नहीं आती अब वहां ग्राम की बधूटियां

पर उपचार, देव-कार्य करते हैं

एक उद्विग्न कम उम्र के पुजारी    

लोग कहते हैं अब कार्य वे जघन्य जो 

तब होते थे

दीप बुझने के बाद

आधी रात के करीब  

चोरी से रात के अँधेरे में

उससे भी घृणित कृत्य

अब होते है शायद

हैलोजन की रोशनी में

ठीक देव –विग्रह की नाक के नीचे
आँखों के सामने

उत्कट विद्रूपता से

और भगवान् उतने ही निर्विकार हैं

जैसे कि पहले थे 

कुछ भी नही करते अब भी प्रत्यक्षतः

सिर्फ रहते है मौन

उन्हें भी प्रतीक्षा है अति के चरम होने की 

बजते हैं मंदिर में नित्य

हनुमान चालीसा, रामचरित मानस,

गीता के टेप

श्रृद्धालु सुनते हैं, उन्हें विश्वास है

‘तदात्मानं सृजाम्यहम्’  

कृष्ण ने कहा था    

(मौलिक व् अप्रकाशित ) 

 

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Comment

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Comment by Shyam Narain Verma on February 29, 2016 at 12:55pm
बहुत सुन्दर ... सादर बधाई स्वीकारें आदरणीय

कृपया ध्यान दे...

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