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 छंद – वंशस्थ विलं

जगण तगण जगण रगण

121  221  121  212

 

जहाँ मनीषी प्रमुदा रहें सभी

जहां सुभाषी मधुरा प्रमत्त हों

जहां सुधा हो सरसा प्रवाहिता

वहां सदा है अनुराग राजता

 

उदार सारल्य स्वभाव में बसे

रहे मुदा निश्छलता नवीनता

सुकांति में हो कमनीयता घनी

वहां सदा है अनुराग राजता

 

वियोग में भी हिय की समीपता

नितांत तोषी मनसा समर्पिता

जहाँ शुभांगी पुरुषार्थ रक्षिता

वहां सदा है अनुराग राजता

 

सदैव हो मार्दव की सजीवता

सुधैर्य,  वैसी महती अधीरता

प्रभूत हो स्पंदन भी मनोहरा

वहां सदा है अनुराग राजता

 

मनोज्ञता आचरिता पवित्रता

सनीरता कोमलता महीयता

विराजते हैं जिसके सुप्राण में

वहां सदा है अनुराग राजता 

(मौलिक व् अप्रकाशित )

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Comment

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Comment by Shyam Narain Verma on March 4, 2016 at 5:56pm
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति , हार्दिक बधाई आदरणीय । सादर
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 4, 2016 at 12:41pm

वाह आदरणीय बहुत ही सुन्दर 

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