कर रहा क्या करम धर्म के नाम पर
आदमी बेशरम धर्म के नाम पर
दान की लाडली देव घर के लिये
बन गये वो हरम धर्म के नाम पर
लूटते मारते काटते आदमी
ज़न्नतों का भरम धर्म के नाम पर
कर दिये हैं फ़ना बेजुबां जानवर
कौन साईं हुये?और शनि देव है?
है बहस ये गरम धर्म के नाम पर
मिट गया बाँकपन खोइ शालीनता
भाड़ में गइ शरम धर्म के नाम पर
Comment
पटल पे स्थान देने हेतु संपादक मंडल का हार्दिक आभार ....
धन्यवाद आदरणीय Shyam Narain जी...
धन्यवाद आदरणीय laxman dhami जी...
धन्यवाद आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आगे से ख्याल रखूँगा ....
धन्यवाद आदरणीय Ravi Shukla जी...हाँ ये ग़लती हुई है कि बहर का उल्लेख नहीं किया...आइन्दा ख्याल रखूँगा वैसे ग़ज़ल की बहर २१२ २१२ २१२ २१२ है..
आदरणीय बृजेश ब्रज भाई , अच्छी गज़ल कही है , दिली बधाइयाँ आपको । आदरनीय रवि भाई जी के बात से मै भी सहमत हूँ म बहर का उल्लेख ज़रूर किया कीजिये , ऊपर ।
आदरणीय बृजेश जी बधाई इस गजल के लिये दो जगह आपने शर्म को श्ारम लिया है 21 की जगह 12 इससे मिसरा बह्र में नहीं हो रहा । गजल से पहले उसका अरकान लिखने का निवेदन है है मंच का नियम भी है । सादर
हार्दिक बधाई
बहुत उम्दा ... बहुत बहुत बधाई |
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