कहीं कुछ टूटता सा महसूस होता है
कहीं कोई डाली चटक सी जाती है
क्यों अस्तित्व खुद ही बिखर रहा है
हर शख्स जीवन से मुकर रहा है
बस एक धारा बनना चाहा
जो समेटे रहती ध्वनि कल-कल
बहती रहती सदा यूँ ही अविरल
सरोकार न होता जिसे सुख से
न दर्द होता किसी दुःख से
पहचान न होती किसी पाप की
न चाहत होती किसी पुण्य की
काश,रह पाता वैसे ही निष्छल
फिर सोचा.......
क्यों न नींव का पत्थर हो जाऊँ
धरती माँ कि गोद में
कहीं गहराई में आराम से सो जाऊँ
जहाँ शाश्वत सत्य अँधेरा हो
न रहे इंतज़ार कभी ,कोई सवेरा हो
अपना लेता उस अनन्त स्थिरता को
पा लेता उस परब्रह्म परसत्ता को
ए काश मैं झोंका हवा का होता
इधर-उधर ,यहाँ से वहाँ
बहता हर बन्धन से परे
हर किसी का प्यारा होता
जीने का कुछ तो सहारा होता
उड़ता असमानों में बादलों के संग
बरसता बूँदों के संग बन के
जीवन की नयी उमंग
छन भर,ठिठक जाता किसी छत की मुंड़ेर पे
बिखर जाता खुश्बू सा किन्ही मुस्कुराहटों संग
मौलिक एवं अप्रकाशित
©बृजेश कुमार 'ब्रज '
Comment
शत शत नमन एवं धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी
इस भावपूर्ण प्रस्तुति पर बधाई आदरणीय
आपका हार्दिक अभिनन्दन आदरणीया kanta roy जी
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online