2122 2122 2122 212
रात का सन्नाटा' मुझपे मुस्कुराया देर तक
हाथ पर उनको लिखा लिखके मिटाया देर तक
आज ऐसा क्या हुआ क्या साजिशें हैं शाम की
आरजू जिसकी नहीं वो याद आया देर तक
उल्फतें हैं हसरतें हैं और ये दीवानगी
नाम तेरा होंठ पे रख बुदबुदाया देर तक
है अज़ब मंज़र वफ़ा की रहगुज़र में आजकल
चाहतें उस शख्स की जिसने रुलाया देर तक
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Comment
रचना पटल पे आपका हार्दिक अभिनन्दन Ram Ashery महोदय जी
अति सुंदर रचना आपको बहुत बहुत बधाई स्वीकार हो
रचना पटल पे आपका हार्दिक अभिनन्दन एवं आभार आदरणीया rajesh kumari जी
माफ़ कीजिये आदरनीय Er. Ganesh Jee "Bagi" जी अप्रकशन से मेरा मतलब है कहीं किसी पत्रिका आदि में नहीं प्रकाशित है.... फेसबुक पे जरूर पोस्ट की हुई है
आदरणीय ब्रिजेश जी, आपकी यह ग़ज़ल वेब पर इस मंच से पहले ही प्रकाशित है, फिर आप 'अप्रकाशित' टैग के साथ इस मंच पर कैसे प्रस्तुत कर दिए. कृपया स्पष्ट करें.
वाह वाह बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल हुई बृजेश जी हर अशआर दिल तक पंहुचता हुआ दिली दाद कुबूलें मेरी शुभकामनायें |
माफ़ कीजिये आदरणीय Ravi Shukla जी आजकल बिलकुल समय ही नहीं मिल रहा है देर से ही सही आपका हार्दिक आभार एवं अभिनन्दन
आदरणीय बृजेश कुमार जी बहुत सुन्दर अश्आर हुए है दिली दाद और मुबारक बाद कुबूल करें
आपके सुंदर शब्दों से अतिप्रसन्नता का अनुभव हुआ....हार्दिक धन्यवाद आदरणीय Dr Ashutosh Mishra जी
आपके उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद आदरणीय जयनित कुमार मेहता जी
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