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हमें अब याद आते हैं सुहानी शाम के चर्चे
तुम्हारी बज़्म की बातें तुम्हारे नाम के चर्चे
सदायें ये मुहब्बत की दिशायें गुनगुनायेंगी
कहीं राधा कहीं मीरा कहीं पे श्याम के चर्चे
लिये बैठा हूँ नम आँखें अधूरा प्यार का किस्सा
कभी मजनू कभी राँझे कभी खय्याम के चर्चे
किसी ने राग जो छेड़ा घुली खुशबू हवाओं में
दुआओं में महक जाते दिले गुमनाम के चर्चे
जलाये जा रहा कोई दिया दिल के दरीचे में
जिगर पे ज़ख्म भी खाये हुये अन्जाम के चर्चे
नहीं है भूलना मुमकिन जुदाई का वो अफ़साना
सुनाई दे रहे हर सिम्त सूनी बाम के चर्चे
यही तो बात ऐसी है जुदा हस्ती हमारी में
वहाँ हक्काम की बातें यहाँ पे आम के चर्चे
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
रचना पटल पे आपका हार्दिक अभिनन्दन एवं आभार आदरणीय gumnaam pithoragarhiजी....जी हाँ रादीफेन दोष है लेकिन उसे दूर करता हूँ तो लय बिगड़ जाएगी आप कोई अच्छा सुझाव दें तो आभारी रहूँगा....
वाह खूब . अच्छी ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई .......... एक दो शेर में रादीफेन का दोष है ..........................
मनमोहक शब्दों में उत्साहवर्धन के लिए आपका ह्रदय से धन्यवाद आदरणीया amita tiwari जी
रचना पटल पे आपका स्वागत है आदरणीया rajesh kumari जी
आपका कोटि कोटि वन्दन अभिनन्दन आदरणीय रामबली गुप्ता जी
रचना की सार्थक समीक्षा के लिए आपका कोटि कोटि वन्दन अभिनन्दन आदरणीय Samar kabeer ....जी हाँ दोष तो है लेकिन अगर दोष दूर करता हूँ तो अशआर में मजा नहीं आएगा...आप कोई अच्छा सुझाव दें तो आपका आभारी रहूँगा
बहुत सुन्दर ग़ज़ल दिल से दाद हाजिर है
हीर राँझा,, राधा .... खूबसूरत खूब सुन्दर रचना
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