दिन ढलने का वक़्त क़रीब आरहा था कि अचानक रास्ते पर सामने से कारवां की तरफ कोई आदमी भागता हुआ नज़र आया | वह हांफता हुआ पास आकर बोला ,आगे ख़तरा है मेरा क़ाफ़ला लुट चूका है | सालारे कारवां ने बिना सोचे समझे उसकी बातों पर यक़ीन करके वहीँ पर क़याम करने का हुक्म देदिया ,हामिद ने लाख कहा इस पर यक़ीन मत करो , मुझे इसकी आँखों में फ़रेब नज़र आरहा है | ...... मगर सब बेकार गया | रात को जब क़ाफ़ले वाले बेख़बर सो रहे थे ,हामिद की आँखों से नींद गायब थी | ...... यकबयक उसे घोड़ों के टापों की आवाज़ सुनाई दी , वह जबतक सबको उठाता कारवां डाकुओं से घिर चूका था और उन्हीं डाकुओं में ख़बर देने वाला भी मौजूद था | ...... हामिद की एक नज़र खबर देने वाले आदमी पर थी और दूसरी नज़र कारवां के सालार पर थी जिनमें कोई खौफ दिखाई नहीं देरहा था। ...... उसके लबों की ख़ामोशी बिना कहे सारी हक़ीक़त बयां कर रही थी। ......
(मौलिक व अप्रकाशित )
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मोहतरम जनाब समर कबीर साहिब आदाब , लघु कथा पसंद करने और हौसला अफ़ज़ाई का तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी
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