ग़ज़ल ( क्या ज़रूरत थी मुस्कराने की )
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2122 ------1212 ------22
फ़ितरते बर्क़ है जलाने की /
ख़ैर क्या मांगें आशियाने की /
जाँ अगर लेनी थी बता देते
क्या ज़रूरत थी मुस्कराने की /
उनकी आदत है जुल पे जुल देना
और अपनी फ़रेब खाने की /
छिन गई नींद लुट गया है सुकूं
ये सज़ा पायी दिल लगाने की /
पास जाके भी देखते कैसे
उनकी आदत है मुंह छुपाने की/
घर किराये के ख़ूब मिलते हैं
क्या ज़रूरत मकाँ बनाने की /
इश्क़ तस्दीक़ करने से पहले
आदतें डालिये निभाने की /
(मौलिक व अप्रकाशित )
Comment
मोहतरमा कान्ता साहिबा , आपकी हौसला अफ़ज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया ,मेहरबानी
जनाब मनोज कुमार अहसास साहिब , आपकी हौसला अफ़ज़ाई का तहेदिल से बहुत बहुत शुक्रिया , महरबानी
जनाब पंकज कुमार साहिब , आपकी हौसला अफ़ज़ाई का तहेदिल से बहुत बहुत शुक्रिया , महरबानी
मोहतरम जनाब समर कबीर साहिब आदाब , आपकी हौसला अफ़ज़ाई का तहेदिल से बहुत बहुत शुक्रिया , महरबानी
जनाब आशुतोष मिश्रा साहिब , आपकी ख़ूबसूरत दाद और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया
भाई तस्दीक जी ..
जाँ अगर लेनी थी बता देते
क्या ज़रूरत थी मुस्कराने की /..क्या बात है ,,आनद आ गया
इश्क़ तस्दीक़ करने से पहले
आदतें डालिये निभाने की / अच्छा मशविरा इस ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें
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