ग़ज़ल (पास है वह कहाँ दूर है )
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जो तसव्वुर में मामूर है |
पास है वह कहाँ दूर है |
आइने पर न तुहमत रखो
वह तो पहले से मग़रूर है |
मुस्करा उनके हर ज़ुल्म पर
यह ही उल्फ़त का दस्तूर है |
उनके दीदार का है असर
मेरे रुख पे न यूँ नूर है |
बे वफ़ाई है वह हुस्न की
जो ज़माने में मशहूर है |
छोड़ जाये गली किस तरह
दिल के हाथों वो मजबूर है|
अज़्मे उल्फ़त न तस्दीक़ कर
फ़ितरते हुस्न तो कूर है |
(मौलिक व अप्रकाशित )
Comment
मोहतरम जनाब तेजवीर साहिब , आपकी हौसला अफ़ज़ाई का तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी। ...
मोहतरम जनाब गिरिराज साहिब , आपकी हौसला अफ़ज़ाई का तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी। ... सर जी देखने में तो दोनों सानी मिसरे एक जैसे लग रहे हैं मगर मेरे मिसरे में जो ज़ाहिरा किया गया है वह है कि आशिक़ के रुख पर तो उदासी रहती है उसके रुख पर नूर यूँही नहीं आगया वह तो महबूब के दीदार का असर है। ...... यूँ शब्द को प्रश्न वाचक बनाकर शब्द असर से जोड़ा गया है ,,,,शुक्रिया
मोहतरम जनाब रवि शुक्ल साहिब , आपकी हौसला अफ़ज़ाई का तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी। ...
मोहतरमा कान्ता साहिबा , आपकी हौसला अफ़ज़ाई का तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी। ...
मोहतरम जनाब समर कबीर साहिब आदाब , आपकी हौसला अफ़ज़ाई का तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी। ...
हार्दिक बधाई आदरणीय तस्दीक अहमद खान साहब जी! बेहतरीन गज़ल!
आदरणीय तस्दीक भाई , छोटी बहर मे बढिया ग़ज़ल कही आपने , दिली मुबारक बाद स्वीकार करें ।
भाव के हिसाब से इन दो कहन मे से कौन सा सही होगा एक बार सोचियेगा
उनके दीदार का है असर उनके दीदार का है असर
मेरे रुख पे न यूँ नूर है | मेरे रुख़ पे ये जो नूर है
आदरणीय तस्दीक अहमद जी बधाई
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