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ग़ज़ल : नाम को गर बेच कर

2122   2122    2122    212

नाम को गर बेच कर व्यापार होना चाहिए
दोस्तों फिर तो हमें अखबार होना चाहिए

आपके भी नाम से अच्छी ग़ज़ल छप जायेगी
सरपरस्ती में बड़ा सालार होना चाहिए

सोचता हूँ मैं अदब का एक सफ़हा खोलकर
रोज़ ही यारो यही इतवार होना चाहिए

क्या कहेंगे शह्र के पाठक हमारे नाम पर
छोड़िये, बस सर्कुलेशन पार होना चाहिए

हम निकट के दूसरे से हर तरह से भिन्न हैं
आंकड़ो का क्या यही मेयार होना चाहिए

नो निगेटिव न्यूज का मुद्दा मुनासिब आपका
गैर वाज़िब बात का प्रतिकार होना चाइये

है कहीं खोया हुआ विज्ञापनों के ढेर में
बीच में इनके कही अखबार होना चाहिए

मौलिक एवं अप्रकाशित ।

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Comment by गिरिराज भंडारी on March 1, 2016 at 8:56pm

आदरणीय रवि भाई , बढिया गज़ल कही है , सभी अश आर बढिया हैं , दिली मुबारक बाद आपको  ॥

Comment by Sushil Sarna on March 1, 2016 at 8:24pm

नाम को गर बेच कर व्यापार होना चाहिए
दोस्तों फिर तो हमें अखबार होना चाहिए

बहुत खूब आदरणीय क्या हकीकत बयाँ की है आपने .... तीक्षण कटाक्ष युक्त इस बेहतरीन ग़ज़ल के पेशकश पर हार्दिक बधाई सर जी।

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