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इसे जीना कहें तो आप कह लें
गुज़ारे के लिए लड़ता रहा हूँ
ख़यालोँ में बड़ी रानाइयां है
तुम्हें मैं इसलिए भी सोचता हूँ
सच में बहुत ही उम्दा आदरणीय रवि शुक्ला जी, हार्दिक वधाई आपको!
आदरणीय रवि जी, ग़ज़ल के सभी अश'आर बहुत ही कमाल हुए , ये शे'र मुझे बहुत प्यारा लगा
इसे जीना कहें तो आप कह लें
गुज़ारे के लिए लड़ता रहा हूँ - बधाई हो
गुज़र जाते सभी रुकते नहीं हैं
अकेला रास्ते सा रह गया हूँ
वाह आदरणीय रवि जी बहुत ही दिलकश अशआर बने हैं … ग़ालिब होते तो जरूर कहते कि हर शे'र पे दम निकलता है .... बहरहाल इस खूबसूरत अहसासों वाली ग़ज़ल के लिए दिल से बधाई स्वीकार करें आदरणीय। सादर _/\_
आदरणीय मिथिलेश जी बहुत बहुत आभार आपका । आपको ग़ज़ल पसंद आई और शेर के कई नये अर्थ भी और समझ आये आपकी पसंद को सलाम । अनुग्रह बनाये रखें । सादर
आदरणीय रवि जी बहुत शानदार ग़ज़ल हुई है. शेर दर शेर दाद हाज़िर है-
कहाँ अपना भला मैं कर रहा हूँ
ख़ुशी अपनों की हर दम देखता हूँ............. आप कितने सहज अंदाज में अपनी बात कह जाते है. कमाल का मतला हुआ है. मैंने इस मतले को कई दफ़ा पढ़ा और हर बार इसकी गहराई तक पहुँचता गया हूँ. एक पिता, एक पति एक सरपरस्त होने का मतलब क्या है, बखूबी उजागर हुआ है. शानदार मतला हुआ है. दाद कुबूल फरमाएं
इसे जीना कहें तो आप कह लें
गुज़ारे के लिए लड़ता रहा हूँ........... लाजवाब .... कमाल .... दिल जीतू शेर....आपने दिल बात कह दी. हासिल-ए-ग़ज़ल
ख़यालोँ में बड़ी रानाइयां है
तुम्हें मैं इसलिए भी सोचता हूँ.......... बहुत बढ़िया शेर हुआ है.
इरादा आशिकी का था कभी पर
जुनूँ का एक अब मैं सिलसिला हूँ......दिल खुश कर दिया आपने ये शेर कह के. अपना सच आपके लफ़्ज़ों में महसूस कर रहा हूँ
गुनाहों पर मुझे तस्लीम कब थी
इसी मसले पे मैं सबसे ख़फा हूँ............... कमाल का अंदाज़े-बयां ....
बनाया है तबीअत से ख़ुदा ने
उसी की मैं इनायत का पता हूँ............. बढ़िया शेर
मुकम्मल वो ग़ज़ल है इक सुरीली
मैं मुबहम शेर सा तनहा खड़ा हूँ............. वाह वाह वाह.. क्या खूब कहा है!
गुज़र जाते सभी रुकते नहीं हैं
अकेला रास्ते सा रह गया हूँ....................... ग़ज़ल अपने चरम पर है. आदरणीय रवि जी आपकी ग़ज़ल की सादगी और गहराई वो भी छोटी बह्र में. कमाल है. लाजवाब ग़ज़ल हुई है. इस ग़ज़ल पर आपको दिल से दाद और मुबारकबाद .... सादर
पोस्ट में ग़ज़ल से पूर्व इसका वज्न गलती से लिखने से रह गया था कृपया इसके साथ पढने का निवेदन है
1222 1222 122
आदरणीय गिरिराज जी आपकी सराहना से हौसला मिलता है बहुत बहुत आभार आपका । आपके करीब हो सका है कोई शेर यह हमारे शेर का सौभाग्य है । आपके मार्ग दर्शन के लिये भी आभार । सादर
आदरणीय श्याम नारायण जी गजल पर शिरकत के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।
आदरनीय रवि भाई , बेहतरीन गज़ल हुई है , आपको इस गज़ल के लिये हार्दिक बधाइयाँ ॥
इसे जीना कहें तो आप कह लें
गुज़ारे के लिए लड़ता रहा हूँ
बनाया है तबीअत से ख़ुदा ने
उसी की मैं इनायत का पता हूँ
मुकम्मल वो ग़ज़ल है इक सुरीली
मैं मुबहम शेर सा तनहा खड़ा हूँ -- ये अशआर मुझे मेरे दिल के क़रीब लगे , पुनः बधाइयाँ ॥
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