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बना कर इक बड़ी लाइन कई बीमार बैठे हैं,
उन्हींके साथ में कितने यहां एमआर बैठे हैं।
न जाने सेल को किसकी नज़र ये लग गई यारब,
रिटेलर सब हमारी कोशिशों के पार बैठे हैं ।
ये जितने डाक्टर है सब मुझे जल्लाद लगते है,
मरीजो को दवा क्या दें लिए तलवार बैठे हैं।
मरीजे इश्क हैं सारे इन्हें मतलब नज़ारे से,
लिए आँखों में कब से हसरते दीदार बैठे हैं।
दुपहिया धूप में रक्खा उठा कर चल पड़े थे वो,
बयाँ के बाद की तकलीफ में सरकार बैठे हैं।
हमें खाली लिफ़ाफ़ा वो थमाकर देखिये खुद ही,
वलीमा खा गये कितने कई तैयार बैठे हैं ।
भला क्यों मुफ़्त का हर माल ग़ालिब को लगा अच्छा,
बतायें तो बड़े नक्काद जो हुशियार बैठे हैं ।
चुरा ली जूतियां मेरी किसी ने कल जो हुजरे से,
कसम से मिल वो जाये आज खाये खार बैठे हैं।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
वाह्ह्ह वाह्ह क्या जबरदस्त कटाक्ष किया है डॉक्टर पर आँखों के सामने चित्र सा बन गया पढ़ते पढ़ते क्या खूब कहा .बहुत मजेदार रोचक ग़ज़ल कही आ० रवि शुक्ल भैया दिल से दाद हाजिर है .
आदरणीय रवि भाई , आपने शिज्जु भाई के दिल की बात कह दी है , मतले और एक शेर में । अच्छी गज़ल हुई है दिली बधाइयाँ स्वीकार करें ।
आदरणीय शिज्जु भाई आप जानते हैै इसके कुछ शेर के पीछेे आप के अनुभ्ााव है और आपके साथ हुई चर्चा है । इसलिये सभी आदरणीय मित्रों की दाद ओ मुबारक बाद के आप भी हकदार है । और अगर कोई डाक्टर हमसे नाराज हो जाए तो उसमें भी साझेेदारी कर लीजियेगा । हा हा हा
आभार आपको हमारी ओर से । सादर
आदरणीय तसदीक अहमद जी आपकी गजल पर मौजूदगी खुशी का सबब है दाद पाकर अच्छा लगा बहुत बहुत धन्यवाद
आदरणीय समर कबीर साहब आदाब आपसे गजल पर दाद पाकर आश्वस्त हुए है । खिचांई का इरादा नहीं था बस शेर हो गये मजाहिया में कभी कभी बात बढ़ा चढ़ा कर कह दी जाती है । ये हमारा अनुभव है । हमारी गजल के बहाने से आपने एक खूबसूरत सा शेर मंच पर साझा किया उसके लिये और गजल पर आपकी शिरकत और हौसला अफजाई का बेहद शुक्रिया । सादर ।
आदरणीय ब्रजेश जी गजल पर आपकी उपस्थिति का धन्यवाद स्वीीकार करें
आदरणीय विजय जी गजल पसंद आई धन्यवाद स्वीकार करें
मोहतरम जनाब रवि शुक्ल साहिब , ' उन्हीं के साथ में कितने यहाँ एम आर बैठे हैं ; बहुत खूब , आपने डॉक्टरों को बे पर्दा कर दिया
बेहतर ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
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