“हे भोले भंडारी, कुछ कर बहुत परेशान कर रक्खा है मेरी सास ने जीना दूभर हो गया है हर वक़्त कोई न कोई बखेड़ा खड़ा कर टें टें करती रहती है मैं क्या करूँ?”
“बहुत बार समझा चुका हूँ तुम दोनों को वो माँ जैसी और तुम बेटी जैसी हो एक दूसरे की अहमियत समझो और सम्मान करो महिला होकर महिला का सम्मान नहीं करोगी तो किसी और से क्या उम्मीद करोगी किन्तु मुझे तुम्हारा कोई समाधान नजर नहीं आता हर बार अपना वादा तोड़ देती हो अच्छा बताओ क्या चाहती हो”?
“हे प्रभु कुछ ऐसा करो कि मेरी सास बोल न सके उसे गूंगी कर दो या उसकी जीभ छीन लो”|
“ठीक है आखिरी बार ये मन्त्र फूँक कर पुड़िया देता हूँ जाकर अपनी सास के दूध में डाल कर पिला देना इसको मिलाते ही दूध में मीठा पन आ जाएगा कम रहा तो अपनी तरफ से चीनी मिला देना जितना मीठा दूध होगा उतनी ही जल्दी असर करेगा तुम्हारी सास तोतली हो जायेगी”
बहू वापस मुड़ी ही थी कि उसकी सास आकर बोली “हे प्लभू ये त्या तिया आपने तो बहू तो तोतली तलने तो बोला था मदल मैं तोतली तैसे हो दई?”
“जरूर तुमने ज्यादा मीठा करने के लिए वो दूध चखा होगा जो बहू के लिए पुड़िया मिलाकर बनाया था थोड़ी देर में घर जाकर देखना तुम्हारी बहू भी चख चुकी होगी क्यूंकि मैं उसे भी अच्छे से जानता हूँ अभी भी तुम दोनों को अकल नहीं आएगी तो बहरा का दूँगा!!!!”
“नहीं प्लभू जी हमें तोतली ही लहने दो बहला कल दोगे तो एक दूछ्ले की बातें कैछे छुनेंगी”
इतना सुनते ही महादेव जी ने पास में रखा लोटा भरा विष पी लिया कुछ और ज्यादा ही नीले हो कर हाथ जोड़कर अपने प्रभु से बोले “हे प्रभु, इसके निर्माण में कहाँ कमी रह गई थी कहीं गलती से दोनों में एक ही चिप ????”
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आ० डॉ० आशुतोष जी ,आपकी सराहना पाकर लेखन कर्म सार्थक हुआ दिल से आभार .
आ० शेख़ उस्मानी जी आप उत्साह वर्धन करती हुई इस प्रतिक्रिया की शुक्रगुजार हूँ आपने इस प्रस्तुति के रोचकता को सराहा मेरा लिखना सार्थक हुआ |बहुत बहुत आभारी हूँ
आदरणीया इस सुंदर हास्य लघुकथा के लिए ह्रदय से बधाई स्वीकार करें सादर
रामशिरोमणि पाठक जी ,आपका बहुत- बहुत शुक्रिया |
आ० डॉ० विजय शंकर जी ,आपको प्रस्तुति पसंद आई दिल से आभार आपका सादर.
बहुत बहुत शुक्रिया राहिला जी ,आपने इस हास्य व्यंग का मजा लिया मेरा लेखन कर्म सार्थक हुआ दिल से आभारी हूँ |
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