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उसकी बेटी से छेड़खानी कर रहे तीन उपद्रवियों से अकेले ही लड़ा था वो, इस मुठभेड़ में उस पर दो बार चाकू के वार हुए, लेकिन घायल होने के बावजूद भी वो पूरी शक्ति से लड़ा और अंततः उन बदमाशों को भगा ही दिया| उसकी बेटी एक नर्स थी, वो उसे तुरंत उसी चिकित्सालय में लेकर गयी, जहाँ वो काम करती थी| रास्ते भर वो मुस्कुराता रहा और बेटी को दिलासा देता रहा| चिकित्सालय में उसके घावों पर मरहम-पट्टी की गयी| चिकित्सक ने दवा और एक इंजेक्शन भी लिख दिया| इंजेक्शन उसी की बेटी ने लगाया, इंजेक्शन लगते ही वो चिल्लाया, "उफ़... थोड़ा सा धीरे..."

अब उसकी बेटी मुस्कुराई और कहा, "चाकू के इतने बड़े घाव तो आपने हँसते-हँसते सह लिये और इतनी छोटी सी सुई का दर्द नहीं सह पाये?"

उसने उसकी बेटी के हाथों को देखते हुए उत्तर दिया, 

"अपनों से उम्मीद कुछ ज़्यादा रहती है|"

(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on March 15, 2016 at 3:15pm

रचना को पसंद कर मेरे उत्साहवर्धन के लिए सादर आभार आदरणीया राहिला जी, आदरणीया  नीता कसार जी, आदरणीया राजेश कुमारी जी, आदरणीय  तेजवीर  सिंह जी सर, आदरणीय राम शिरोमणि पाठक जी |

Comment by ram shiromani pathak on March 9, 2016 at 6:23pm
अहा क्या बात है ।।बधाई आपको
Comment by TEJ VEER SINGH on March 8, 2016 at 9:40pm

हार्दिक बधाई चंद्रेश जी!बेहतरीन प्रस्तुति!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 8, 2016 at 3:34pm

बहुत  खूब  पञ्च लाइन ने बहुत ख़ास बना दिया लघु कथा को .हार्दिक बधाई आ० चंद्रेश छतलानी जी  

Comment by Nita Kasar on March 8, 2016 at 2:46pm
अपनों से उम्मीद कुछ ज़्यादा रहती है।उन्है दर्द का अहसास रहता है।बधाई आपको सार्थक कथायें लिये आद०चंद्रेश छतलानी जी ।
Comment by Rahila on March 8, 2016 at 11:06am
बहुत बेहतरीन भावपूर्ण और सार्थक रचना आदरणीय सरजी! शीर्षक भी पूर्णतः न्याय करता हुआ । बहुत बधाई

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