उसकी बेटी से छेड़खानी कर रहे तीन उपद्रवियों से अकेले ही लड़ा था वो, इस मुठभेड़ में उस पर दो बार चाकू के वार हुए, लेकिन घायल होने के बावजूद भी वो पूरी शक्ति से लड़ा और अंततः उन बदमाशों को भगा ही दिया| उसकी बेटी एक नर्स थी, वो उसे तुरंत उसी चिकित्सालय में लेकर गयी, जहाँ वो काम करती थी| रास्ते भर वो मुस्कुराता रहा और बेटी को दिलासा देता रहा| चिकित्सालय में उसके घावों पर मरहम-पट्टी की गयी| चिकित्सक ने दवा और एक इंजेक्शन भी लिख दिया| इंजेक्शन उसी की बेटी ने लगाया, इंजेक्शन लगते ही वो चिल्लाया, "उफ़... थोड़ा सा धीरे..."
अब उसकी बेटी मुस्कुराई और कहा, "चाकू के इतने बड़े घाव तो आपने हँसते-हँसते सह लिये और इतनी छोटी सी सुई का दर्द नहीं सह पाये?"
उसने उसकी बेटी के हाथों को देखते हुए उत्तर दिया,
"अपनों से उम्मीद कुछ ज़्यादा रहती है|"
(मौलिक और अप्रकाशित)
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रचना को पसंद कर मेरे उत्साहवर्धन के लिए सादर आभार आदरणीया राहिला जी, आदरणीया नीता कसार जी, आदरणीया राजेश कुमारी जी, आदरणीय तेजवीर सिंह जी सर, आदरणीय राम शिरोमणि पाठक जी |
हार्दिक बधाई चंद्रेश जी!बेहतरीन प्रस्तुति!
बहुत खूब पञ्च लाइन ने बहुत ख़ास बना दिया लघु कथा को .हार्दिक बधाई आ० चंद्रेश छतलानी जी
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