गजल/धूप
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1222 1222 1222 1222
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करो तय दोस्तो थोड़ा जिगर में धूप का होना
मिटा सीलन को देता है कि घर में धूप का होना /1
दुआ मागी थी रिमझिम में जरा सी धूप तो दे दो
अखरता क्यों तुझे है अब डगर में धूप का होना /2
जहाँ देखो वहीं जलवा करें साए इमारत के
पता चलता किसे है अब नगर में धूप का होना /3
चलो आँगन में रख आए चटखती हड्डियों को अब
जरूरी है बुढ़ापे की उमर में धूप का होना /4
करो उम्मीद मिल जाए सरों की सीध में सूरज
पता देता है साहस का सफर में धूप का होना /5
हटाओ चिलमनों को अब घरों से औ दिमागों से
तबीयत साज रखता है सहर में धूप का होना /6
चलो कुछ देर बैठें अब किनारे झील के यारो
समा रंगीन करता है असर में धूप का होना /7
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मौलिक व अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’
Comment
आ० भाई आपकी सलाह सर आखों पर .आगे प्रयास रहेगा की इस तरह का दुहराव न हो l
आ0 भाई राहुल जी , गजल की प्रशंसा के लिए आभार ।
आ0 भाई समर जी, आपकी उपस्थिति और स्नेह से मन को अति प्रसन्नता हुई । समर भाई चैथे शैर में उमर को अपभ्रश के तौर पर ही लेकर प्रयोग किया गया है क्यों कि तत्सम शब्द के तौर पर प्रयोग से लय और बहर दोनो बाधित हो रही हैं । क्या प्रचलित शब्दों का प्रयोग गजल में नहीं किया जा सकता ? इस संदर्भ में मार्गदर्शन करें ।
आ0 भाई सतविन्द्र जी गजल का मान बढ़ाने के लिए हार्दिक धन्यवाद ।
आ0 भाई बृजेश जी गजल की प्रशंसा और स्नेह के लिए आभार ।
आ0 भाई रामबली जी, उपस्थिति से गजल का मान बढ़ाने के लिए हार्दिक धन्यवाद।
आ0 वर्षा जी गजल पर उपस्थित हो मान बढ़ाने के लिए आभार ।
आ0 भाई नरेंद्र जी, गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार ।
आ0 भाई आमोद बिन्दौरी जी, गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद ।
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