2122 2122 212
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कब यहाँ पर्दा उठाया जाएगा
कब हमें सूरज दिखाया जाएगा /1
थक गए हैं झूठ की उँगली पकड़
सच का दामन कब थमाया जाएगा /2
सब परेशाँ तीरगी से दोस्तो
कब दिया कोई जलाया जाएगा /3
है सुरक्षा खाद्य की कानून में
पर अनाजों को सड़ाया जाएगा /4
दूर महलों से खड़ी कुटिया में फिर
इक निवाला बाँट खाया जाएगा /5
यह समय है झूठ का कहते है सब
राम को रावण बताया जाएगा /6
सोच असुरों सी करो मत दोस्तो
खून से खुद के नहाया जाएगा /7
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मौलिक व अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’
Comment
आ0 भाई राहुल जी , गजल की प्रशंसा के लिए आभार ।
आ0 भाई आशुतोष जी गजल पर उपस्थित हो स्नेह जताने के लिए आभार ।
आ0 भाई रामबली जी, उपस्थिति से गजल का मान बढ़ाने के लिए हार्दिक धन्यवाद।
आदरणीय लक्ष्मण भाई जी ..वर्तमान परिदृश्य का बखूबी चित्रण करती इस शानदार ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर
आ० भाई सूबेसिंह जी प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद l
आ० भाई समर कबीर जी अपनी उपस्थिति से ग़ज़ल का मन बढ़ने के लिए हार्दिक आभार l
आ० भाई राम शिरोमणि जी उत्साहवर्धन के लिए आभार l
आ० भाई नरेंद्र जी. प्रशंसा के लिए आभार l
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