For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

1222    1222    1222    1222
************************************
उसे तो मुक्त होना  बस उसी की काहिली से है
कमी जो जिंदगी में यार  वो उसकी कमी  से है /1

जरा ये तो बताओ क्यों बुरा कहते हो किस्मत को
अगर है दूर मंजिल तो  समझ लो बुुजदिली से है /2

मनुज सब  एक से  ही हैं नहीं  छोटा बड़ा कोई
सभी का वास्ता  केवल उसी  इक  रोशनी से है /3

जहाँ गुजरा था इक बचपन सुहाना यार उसका भी
उसी  को  छोड़  आया  वो  बहुत  ही  बेदिली से है /4

हकीकत आप समझो या न समझो आप पर निर्भर
हमारा  जो  भी  रिश्ता  है  महज  उस सादगी से है /5

किसी  का  दर्द  अपना  सा  लगा  करता किसे यारो
सभी को आज मतलब क्यों महज अपनी खुशी से है /6

भले  ही  रंग कुछ  भरते  लतीफे  यार पल दो पल
मगर  हरदम  की रंगत तो ‘मुसाफिर’ शायरी से है /7
*****
मौलिक व अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

Views: 436

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 10, 2016 at 10:54am

आ० राहिला जी ग़ज़ल पर उपस्थिति और प्रशंशा के लिए हार्दिक धन्यवाद l

Comment by Rahila on March 9, 2016 at 12:57pm
"हकीकत आप समझो या न समझो आप पर निर्भर
हमारा जो भी रिश्ता है महज उस सादगी से है"वाह. .बहुत ही शानदार शेर हुआ।

"किसी का दर्द अपना सा लगा करता किसे यारो
सभी को आज मतलब क्यों महज अपनी खुशी से है "वाह-वाह ये तो बहुत ही जबरदस्त शेर हुआ आदरणीय सर जी! बहुत बधाई, पूरी ग़ज़ल ही काबिले तारीफ है।सादर
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 9, 2016 at 11:27am

आ० भाई तेज वीर जी . ग़ज़ल की प्रशंशा के लिए हार्दिक आभार l

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 9, 2016 at 11:26am

आ० भाई राजेश जी , हार्दिक आभार .

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 9, 2016 at 11:25am

आ० भाई शुशील जी , उपस्थिति और प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद l

Comment by TEJ VEER SINGH on March 8, 2016 at 9:44pm

हार्दिक बधाई लक्ष्मण धामी जी!बेहतरीन गज़ल!

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 8, 2016 at 6:49pm

बेहद खूबसूरत ग़ज़ल आदरणीय 

Comment by Sushil Sarna on March 8, 2016 at 5:35pm

किसी का दर्द अपना सा लगा करता किसे यारो
सभी को आज मतलब क्यों महज अपनी खुशी से है /6

वाह आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत खूब .... आपने प्रस्तुत ग़ज़ल में मानवीय अहसासों का बहुत सुंदर चित्रण किया है। दिली मुबारकबाद कबूल फरमाएँ सर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
yesterday
सतविन्द्र कुमार राणा posted a blog post

जमा है धुंध का बादल

  चला क्या आज दुनिया में बताने को वही आया जमा है धुंध का बादल हटाने को वही आयाजरा सोचो कभी झगड़े भला…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
yesterday
आशीष यादव posted a blog post

जाने तुमको क्या क्या कहता

तेरी बात अगर छिड़ जातीजाने तुमको क्या क्या कहतासूरज चंदा तारे उपवनझील समंदर दरिया कहताकहता तेरे…See More
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . रोटी
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post एक बूँद
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर रचना हुई है । हार्दिक बधाई।"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . रोटी
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई।"
Jan 4
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . विविध
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर "
Jan 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . विरह
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
Jan 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया ....
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
Jan 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर ।  नव वर्ष की हार्दिक…"
Jan 2

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service