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उसे तो मुक्त होना बस उसी की काहिली से है
कमी जो जिंदगी में यार वो उसकी कमी से है /1
जरा ये तो बताओ क्यों बुरा कहते हो किस्मत को
अगर है दूर मंजिल तो समझ लो बुुजदिली से है /2
मनुज सब एक से ही हैं नहीं छोटा बड़ा कोई
सभी का वास्ता केवल उसी इक रोशनी से है /3
जहाँ गुजरा था इक बचपन सुहाना यार उसका भी
उसी को छोड़ आया वो बहुत ही बेदिली से है /4
हकीकत आप समझो या न समझो आप पर निर्भर
हमारा जो भी रिश्ता है महज उस सादगी से है /5
किसी का दर्द अपना सा लगा करता किसे यारो
सभी को आज मतलब क्यों महज अपनी खुशी से है /6
भले ही रंग कुछ भरते लतीफे यार पल दो पल
मगर हरदम की रंगत तो ‘मुसाफिर’ शायरी से है /7
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मौलिक व अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’
Comment
आ० राहिला जी ग़ज़ल पर उपस्थिति और प्रशंशा के लिए हार्दिक धन्यवाद l
आ० भाई तेज वीर जी . ग़ज़ल की प्रशंशा के लिए हार्दिक आभार l
आ० भाई राजेश जी , हार्दिक आभार .
आ० भाई शुशील जी , उपस्थिति और प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद l
हार्दिक बधाई लक्ष्मण धामी जी!बेहतरीन गज़ल!
बेहद खूबसूरत ग़ज़ल आदरणीय
किसी का दर्द अपना सा लगा करता किसे यारो
सभी को आज मतलब क्यों महज अपनी खुशी से है /6
वाह आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत खूब .... आपने प्रस्तुत ग़ज़ल में मानवीय अहसासों का बहुत सुंदर चित्रण किया है। दिली मुबारकबाद कबूल फरमाएँ सर।
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