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2122 1122 1122 22 (112)

लोग मिलते नहीं रिश्तो को निभाने वाले 
बीच मँझधार में कश्ती को बचाने वाले ||१||

कौन कीमत समझते हैं किसी की खुशियों की 
लोग मिलते हैं यहाँ ख्वाब चुराने वाले ||२||

जानते हैं मगर इस दिल को कैसे समझायें
लौट के आते नहीं छोड़ के जाने वाले ||३||

आँख में हो अना बाक़ी यही तो दौलत है 
हाँ मगर देखे हैं कागज को कमाने वाले ||४||

ज़िन्दगी भर हमे रखते रहे अंधेरों मे॥
रोज तुरबत पे आके शमआ जलाने वाले॥ ||५||

फ़िक्र हम क्यूँ करें गर दिल को जलाते हैं सब 
पानी-पानी हैं सभी आग लगाने वाले ||६||

ये "रमा" बात है छोटी सी अगर समझो तो
कब बदलते हैं भला जुल्मी जमाने वाले ||७||

 

रमा वर्मा......

मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 534

Comment

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Comment by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on March 20, 2016 at 5:15pm
बहुत उम्दा ग़ज़ल कथ्यों की रवानगी बहु बेहतर हैं आदरेया बधाई क़ुबूल करें।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on March 20, 2016 at 5:00pm
बेहतरीन मतले के साथ बढ़िया भाव पूर्ण पेशकश के लिए हृदयतल से बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीया रमा वर्मा जी।
Comment by Shyam Narain Verma on March 19, 2016 at 5:22pm
बहुत सुंदर , हार्दिक बधाई
Comment by Rama Verma on March 19, 2016 at 1:41pm
शुक्रिया आदरणीय नीलेश जी, मैं सुधारने का प्रयास करुँगी,,
Comment by Rama Verma on March 19, 2016 at 1:37pm
रामबली गुप्ता जी, हार्दिक धन्यवाद,,
Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 19, 2016 at 8:07am

प्रयास के लिए बधाई.. अमूमन हर शैर का ऊला मिसरा बहर में नहीं है...पुन: देख लें 
सादर 

Comment by रामबली गुप्ता on March 18, 2016 at 8:05pm
वाह वाह आदरेया रमा जी बढ़िया ग़ज़ल बनी है। बधाई स्वीकार करें।

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