2122 1122 1122 22 (112)
लोग मिलते नहीं रिश्तो को निभाने वाले
बीच मँझधार में कश्ती को बचाने वाले ||१||
कौन कीमत समझते हैं किसी की खुशियों की
लोग मिलते हैं यहाँ ख्वाब चुराने वाले ||२||
जानते हैं मगर इस दिल को कैसे समझायें
लौट के आते नहीं छोड़ के जाने वाले ||३||
आँख में हो अना बाक़ी यही तो दौलत है
हाँ मगर देखे हैं कागज को कमाने वाले ||४||
ज़िन्दगी भर हमे रखते रहे अंधेरों मे॥
रोज तुरबत पे आके शमआ जलाने वाले॥ ||५||
फ़िक्र हम क्यूँ करें गर दिल को जलाते हैं सब
पानी-पानी हैं सभी आग लगाने वाले ||६||
ये "रमा" बात है छोटी सी अगर समझो तो
कब बदलते हैं भला जुल्मी जमाने वाले ||७||
रमा वर्मा......
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
प्रयास के लिए बधाई.. अमूमन हर शैर का ऊला मिसरा बहर में नहीं है...पुन: देख लें
सादर
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