22 22 22 22
खंजर या तलवार नहीं हूँ
मैं घातक हथियार नहीं हूँ
अपनी शर्तों पर जीती हूँ
क्यूँ कहते खुद्दार नहीं हूँ
मैं नदिया की शीतल धारा
जलता सा अंगार नहीं हूँ
ईश्वर की अनमोल कृति हूँ
औरत हूँ लाचार नहीं हूँ
उज्जवल रश्मि हूँ सूरज की
रातों का अंधियार नहीं हूँ
स्वाभिमान मुझे है प्यारा
मैं दुनिया में भार नहीं हूँ
मुझसे ही परिवार है रोशन
मैं उजड़ा बाजार नहीं हूँ
रमा वर्मा
(मौलिक व अप्रकाशित )
Comment
क्या बात है .... बहुत उम्दा | बधाई आप को |
सभी साहित्य मनीषियों को मेरा सादर नमस्कार, सबसे पहले तो देर से उपस्थित होने के लिए आप सबसे क्षमा चाहती हूँ , आप सबकी अनमोल प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद , आपकी समीक्षा निश्चित ही मेरी लेखनी को सुदृढ़ बनाएगी , मंच पर सदस्य बनने के बाद ये मेरी पहली पोस्ट है , मैं सुधार करने का प्रयास करुँगी | हार्दिक आभार संग नमन ...
आदरणीय रमा जी बधाई इस गजल के लिये हमें तो इसका शिल्प गज़ल का ही लग रहा है बह्र है काफिया है एक विचार भी है इसमें फिर इसको गजल क्यो न कहा जाए । ये ठीक है कि इसमें कुछ स्थानों पर बह्र खारिज हो रही है । दूसरे और चौथे शेर में ताकबुले रदीफेन का दोष भी है ।
है स्वाभिमान मुझको प्यारा
मैं दुनिया में भार नहीं हूँ ऐसे कर के इस के उला को बह्र में किया जा सकता है
आदरणीय राहुल जी आप इसमें गजल के किन तत्वों की कमी मानते है अवश्य साझा करें । जानकारी बढ़ेगी । सादर
आ० डांगी भाई जी, बेशक गज़ल बढ़िया है, दाद कुबूल करे....किंतु.....
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ईश्वर की अनमोल कृति हूँ
औरत हूँ लाचार नहीं हूँ// के उला में बह्र पुन: देख ले. सादर
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