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कैक्टस का फ़ूल –( लघुकथा ) –

कैक्टस का फ़ूल –( लघुकथा ) –

कालेज की ग्रीष्मकालीन छुट्टियों में सुबोध इस बार अपने मित्र आनंद का आग्रह टाल ना सका और उसके गॉव आगया!काफ़ी बडा गॉव था!कहने को गॉव था पर शहरी हर सुविधा मौज़ूद थी!रेलवे स्टेशन,बस स्टॉप,अस्पताल,बैंक ,बिजली,पानी,टी वी,इंटरनैट आदि सब उपलब्ध था!

बैठक में सुबोध अकेला बैठा था कि एक सज्जन मिलने आगये!बडा अजीब प्रश्न किया,"क्या तुम भी माया को देखने आये हो"!

सुबोध कुछ कहता उससे पहले ही आनंद आगया और वह सज्जन खिसक लिये!सुबोध को कुछ समझ नहीं आया अतः आनंद से पूछ बैठा!

आनंद ने    बताया,"यार माया मेरी बहिन है,वह बत्तीस की  होने वाली है!डबल एम ए और बी एड है!उसका रिश्ता तय नहीं हो पा रहा क्योंकि वह ज़ुबान की थोडी कडवी है"!

"क्या मैं एक बार माया जी से मिल सकता हूं"!

 शाम को सुबोध को बैठक में चाय देने माया ही आई!

"माया जी क्या मैं आपसे बात कर सकता हूं"!

"तुम शहरी लोगों की यही आदत खराब है कि अकेली लडकी देखी और लार टपकनी शुरू"!

"आप मुझे गलत समझ रही हैं"!

"आप मेरे भाई के मित्र हो वरना अब तक दो चार पड गये होते"!

सुबोध ने आनंद को अपना निर्णय सुनाया कि वह माया से शादी के लिये राज़ी है!

"सुबोध, माया के बारे में सब कुछ जानने के बाद भी ,कहीं तुम मेरी मित्रता के दवाब में तो नहीं कर रहे शादी"!

"नहीं मित्र, ऐसा बिलकुल भी नहीं है!दर असल मुझे अपने ड्राइंगरूम में कैक्टस का फ़ूल सज़ाना पसंद है"!

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by TEJ VEER SINGH on March 20, 2016 at 2:32pm

हार्दिक आभार आदरणीय चंद्रेश जी!

Comment by TEJ VEER SINGH on March 20, 2016 at 2:31pm

हार्दिक आभार आदरणीय राजेश कुमारी जी!

Comment by TEJ VEER SINGH on March 20, 2016 at 2:30pm

हार्दिक आभार आदरणीय शेख उस्मानी जी!

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on March 20, 2016 at 11:35am

सुंदर सकारात्मक सोच पैदा करने वाली रचना कही है आदरणीय सर| बहुत  बधाई इस रचना के सृजन  हेतु|


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 20, 2016 at 10:42am

वाह वाह...  ड्राइंग रूम में कैक्टस का फूल पसंद है.. ताकि लोग दूर  से  सराहें  तो पर तोड़ने की हिम्मत  कभी न कर सकें बहुत शानदार लघु कथा दिल से बधाई आ० तेजवीर सिंह जी |

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on March 19, 2016 at 12:49pm
हर माया कैक्टस का फूल ही तो है गांव में हो या शहर में...हर किसी को चाहिए यह माया....इसके..बोध...सुबोध...और आनंद...और ...आघात.. को समझने की ज़रूरत है। बहुत बढ़िया कथानक है। मैं क्या इसे सही तरीके से समझ पाया आदरणीय तेज वीर सिंह जी? हार्दिक बधाई आपको सुंदर अनुपम कृति के लिए।

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