हाथों को मेरे तुम थाम लो
मेरा ही बस तुम नाम लो
कानों में अमृत रस घोलो
मैं सुनती रहूँ बस तुम बोलो|
केशों को मेरे तुम सहलाओ
बातों से मेरा जी बहलाओ
बादल तुम नेह के बरसाओ
नैनों में छिपा लूँ आ जाओ|
नज़रों से मुझे तुम पढ़ते रहो
नित स्वप्न सुरीले गढ़ते रहो
आगे ही आगे बढ़ते रहो
सोपान ह्रदय के चढ़ते रहो|
जीवन की मुझे तुम आस दो
नेह का अपने विश्वास दो
यौवन का मुझे मधुमास दो
एहसास मुझे कुछ ख़ास दो|
पलकों को चूम लो हौले से
मासूम अधर ये भोले से
हैं नैन शरारत घोले से
कुछ बंद हुए कुछ खोले से|
जब सूरज डूबे शाम ढले
जब जीवन की हर बात चले
पुरे हो जाए स्वप्न पले
लग जाऊ पिया मैं तुमसे गले||
सरिता पन्थी "मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
Narendrasin Chauhan जी ह्रदय से आभार आपका
Dr Ashutosh Mishra उत्साहं वर्धन के लिए आपका ह्रदय से आभार
बहुत सुंदर रचना
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